इंदौर (पीटीआई भाषा)संविधान की मूल प्रति के लिए सारनाथ का अशोक स्तंभ डिजाइन करने वाले चित्रकारों में शामिल दीनानाथ भार्गव के परिजनों को मलाल है कि राष्ट्रीय प्रतीक के चितेरे को उनके निधन के सात साल बाद भी "उचित सम्मान" नहीं मिल सका है. भार्गव के परिजन चाहते हैं कि दिवंगत चित्रकार के नाम पर सरकार कुछ ऐसा करें, जिससे उनकी कला की ऐतिहासिक विरासत आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके.
निधन के 7 साल बाद भी नहीं मिला उचित सम्मान:स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भार्गव के छोटे बेटे सौमित्र (55) ने सोमवार को कहा, "देश के सरकारी दस्तावेजों से लेकर मुद्रा तक पर मेरे पिता के चित्रित अशोक स्तंभ की छाप रहती है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरे पिता को उनके निधन के सात साल बाद भी उचित सम्मान नहीं मिल सका है." उन्होंने कहा, "मेरे पिता को उनके जीते जी मलाल था कि देश के प्रति कलात्मक योगदान के मुकाबले उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला, उनकी मौत के बाद अब हम लोग भी इस मलाल से जूझ रहे हैं."
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई से ताल्लुक रखने वाले दीनानाथ भार्गव ने इंदौर में 24 दिसंबर 2016 को 89 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली थी. भार्गव के बेटे सौमित्र ने बताया कि पिता के निधन के बाद वह स्थानीय जन प्रतिनिधियों से लेकर केंद्र सरकार के नुमाइंदों तक से मिल चुके हैं, लेकिन संविधान के अशोक स्तंभ के चित्रकार की याद को चिरस्थायी बनाने के लिए अब तक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. उन्होंने कहा, "मेरे पिता के नाम पर किसी ट्रेन या राष्ट्रीय राजमार्ग या कला केंद्र या विश्वविद्यालय या स्टेडियम का नामकरण किया जाना चाहिए, ताकि लोग जान सकें कि दीनानाथ भार्गव कौन थे. वरना उनका नाम इतिहास के पन्नों में दबकर रह जाएगा."