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Nomination Inside Story: कई कोशिशों के बाद भी निरस्त नहीं हुए नेताओं के नामांकन, जानिए क्या रही वजह - जानिए कैसा नामांकन निरस्त होता है

नामांकन में जानकारी छुपाने को लेकर एक के बाद एक नेताओं की शिकायत चुनाव आयोग में की जा रही है. साथ दूसरे प्रत्याशियों द्वारा संबंधित प्रत्याशी का नामांकन निरस्त करने की भी मांग की जा रही है. एमपी में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में विजयवर्गीय, अजय सिंह, राहुल लोधी सहित कई नेता हैं. इंदौर से सिद्धार्थ माछीवाल की रिपोर्ट में पढ़िए नामांकन निरस्त की इनसाइड स्टोरी...

MP Chunav 2023
एमपी विधानसभा चुनाव 2023

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 2, 2023, 4:25 PM IST

इंदौर।मध्य प्रदेश की चार विधानसभा सीटों के उम्मीदवारों के नामांकन पर आई आपत्ति के बावजूद आखिरकार नामांकन स्वीकार कर लिए गए हैं. हालांकि कांग्रेस ने इस मामले में हाईकोर्ट जाने का फैसला किया है, लेकिन इस घटनाक्रम से इतना तो तय हो गया है कि नामांकन के साथ प्रत्याशी की जानकारी के लिए दाखिल किए जाने वाले शपथ पत्र में गलतियों के आधार पर या अपराध संबंधी जानकारी नहीं दिए जाने के बावजूद निर्वाचन आयोग प्रत्याशी का नामांकन निरस्त नहीं करता. ईटीवी भारत द्वारा की गई इस मामले की पड़ताल में पता चला शपथ पत्र से जुड़ी न्यायिक व्यवस्था सिविल कोर्ट के अधीन है. ऐसे मामले में सिविल कोर्ट के फैसले के बाद ही नामांकन अथवा चुनाव लड़ने को लेकर कोई फैसला किया जा सकता है.

एमपी में कई नेताओं के नामांकन होल्ड पर: दरअसल, 17 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश में 21 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशियों के नामांकन फार्म जमा करने की व्यवस्था की थी. इसके बाद 31 अक्टूबर तक नामांकन की जांच हुई, इस दौरान कुल नामांकन में से प्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल, पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा और राज्य मंत्री राहुल सिंह लोधी के नामांकन रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा होल्ड कर दिए गए. इसके लिए वजह बताई गई कि राहुल सिंह ने निर्वाचन आयोग द्वारा दिए गए शपथ पत्र के स्थान पर अपनी और पत्नी की अचल संपत्ति की जानकारी वाला पृथक से शपथ पत्र प्रस्तुत किया है. जिसके कुछ कॉलम खाली थे.

सुरेंद्र पटवा से लेकर विजयवर्गीय ने छुपाई जानकारी: यही स्थिति पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा के प्रकरण में थी. जिसमें बताया गया कि पटवा ने 167 की ही जानकारी दी, जबकि 6 मामलों में उन्हें सजा होना बताया गया. लेकिन ऐसे 28 मामलों में सजा होने संबंधी शपथ पत्र वह पहले ही प्रस्तुत कर चुके हैं. इसी प्रकार राहुल लोधी के मामले में उनकी विधायकी हाई कोर्ट ने शून्य कर दी थी. इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट से सशस्त्र जमानत पर हैं. इसलिए उन्हें चुनाव लड़ने का लाभ नहीं दिया जा सकता. इन तीन मामलों के सुर्खियों में आने के बाद अचानक कैलाश विजयवर्गीय का मामला सामने आया. जिसमें पता चला कि विजयवर्गीय ने पश्चिम बंगाल में विचाराधीन एक दुष्कृत के मामले की जानकारी शपथ पत्र में नहीं दर्शाई है.

शपथ पत्र में गलती या अपूर्ण जानकारी का अधिकार सिविल कोर्ट को:वहीं रायपुर में विचाराधीन एक केस में स्थाई रूप से फरार होने की जानकारी भी उनके द्वारा नहीं दी गई. इस मामले में जब विजयवर्गीय के खिलाफ कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे संजय शुक्ला ने आपत्ति ली, तो निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को भी इस मामले में पड़ताल करनी पड़ी. इसके बाद निर्वाचन से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि शपथ पत्र में गलती अथवा अपूर्ण जानकारी पर कार्रवाई का अधिकार क्षेत्र सिविल कोर्ट के अधीन है, क्योंकि शपथ पत्र जारी होना सिविल कोर्ट की व्यवस्था है.

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ऐसे मामलों में निरस्त नहीं होता नामांकन:नतीजतन जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में कार्रवाई सिविल कोर्ट द्वारा की जाती है. यही वजह रही की आयोग ने विजयवर्गीय समेत अन्य तीनों के नामांकन स्वीकार कर लिए, हालांकि इस मामले के सुर्खियों में आने के बाद अब कांग्रेस विजयवर्गीय के प्रकरण को लेकर हाई कोर्ट में अपील दायर करने जा रही है. यही स्थिति अन्य तीनों प्रत्याशियों के नामांकन स्वीकारे जाने को लेकर है. बता दें शपथ पत्र में गलत जानकारी या अपूर्ण जानकारी के आधार पर नामांकन निरस्त नहीं होता है.

नॉमिनेशन के दौरान शपथ पत्र की सत्यता की जांच नहीं होती:वहीं इस मामले में इंदौर कलेक्टर इलैयाराजा टी का कहना है कि "नामांकन के साथ एफिडेविट में गलत जानकारी दिए जाने अथवा आधी अधूरी जानकारी के आधार पर किसी का नॉमिनेशन निरस्त नहीं हो सकता. यह अलग बात है कि प्रत्याशियों को अपनी वास्तविक और सही डिटेल शपथ पत्र में डिक्लेअर करना चाहिए. नॉमिनेशन के दौरान शपथ पत्र की सत्यता की जांच नहीं होती, यह बिल्कुल स्पष्ट है, इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिए.

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