इंदौर।मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में सूरज की पहली किरण स्वच्छता के उस मॉडल पर पड़ती है, जिसकी बदौलत स्वच्छता रैंकिंग में सिक्सर लगाने वाला यह शहर इस साल सेवन स्टार रैंकिंग वाला देश का पहला शहर बन चुका है. यहां प्रतिदिन करीब 6 लाख डोर स्टेप से निकलने वाला करीब 1192 टन कचरे में से 992 टन गीला कचरा जबकि बाकी सूखा कचरा होता है. यह कचरा घर- घर से ही गीले और सूखे के रूप में अलग-अलग लिया जाता है. जिससे पहले स्टेप में कचरे का सैरीगेशन हो जाता है.
गीले कचरे से बनाते हैं बायो मीथेन :इस कचरे की भी खासियत यह है कि इसका सैरीगेशन परसेंटेज देश में सबसे ज्यादा 97% है. यह कचरा शहर के 85 वार्डों में चलने वाली 575 कचरा गाड़ियों से शहर के विभिन्न स्थानों पर तैयार किए गए 10 गार्बेज ट्रांसफर स्टेशन पर इकट्ठा किया जाता है. इसके बाद गीले कचरे से बायो सीएनजी बनाने और सूखे कचरे को अलग-अलग रूपों में छंटाई करके बेचने के लिए ट्रेंचिंग ग्राउंड भेजा जाता है. यहां गीले कचरे से बायो मीथेन बनाने के लिए पीपीपी मोड पर गोबर धन प्लांट स्थापित किया गया है. इसके जरिए बायो मिथेन गैस बनाकर बेची जा रही है. इसके अलावा सूखे कचरे के लिए स्थापित नेप्रा प्लांट से कचरे की छंटाई कराकर उसे अलग-अलग उत्पाद तैयार करने के लिए पीपीपी मॉडल से विकसित किए गए प्लांट के जरिए बेचा जा रहा है.
सालाना ₹12 करोड़ रुपए की कमाई कचरे से :देश के अन्य नगरीय निकाय जहां कचरे के कारण अपनी आय का बड़ा हिस्सा उसके निपटान में खर्च करते है, वहीं इंदौर में नगर निगम को सालाना ₹12 करोड़ रुपए की कमाई कचरे से होती है जिसमें 4.30 करोड़ रुपए गीले और सूखे कचरे को उपचारित करके बेचने से और 8 से 9 करोड रुपए की राशि कार्बन ट्रेडिंग के जरिए प्राप्त होती है.
7 स्टार के लिए दो साल से तैयारी :सेवन स्टार रैंकिंग के लिए बीते 2 साल से तैयारी की गई. लगातार स्वच्छता सर्वेक्षण में पहले नंबर पर आने के साथ इंदौर नगर निगम ने सेवन स्टार रैंकिंग के लिए 2 साल पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी. इसमें वार्ड स्तर पर कचरे की प्रोसेसिंग पब्लिक फैसिलिटी और टॉयलेट की सुविधा विकसित की गई. इसमें भी फीडबैक के अलावा हर शिकायत के ऑनलाइन समाधान के लिए एक ऐप विकसित किया गया. जिसका सर्वेक्षण टीम ने एक से डेढ़ महीने तक बारीकी से सर्वे किया था. इसके अलावा इंदौर में एयर क्वालिटी इंडेक्स को सुधारने के लिए प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास किए गए. वहीं उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी को भी जल स्त्रोतों में मिलने से प्रभावी तरीके से रोका गया.
इंदौर का स्वच्छता का सफर :इंदौर को देश के सबसे स्वच्छ शहर होने का खिताब पहली बार वर्ष 2017 में मिला. इसके बाद वर्ष 2016 से घर-घर कचरा कलेक्शन गीला-सूखे कचरे को अलग करना सैनिटेशन के तहत टॉयलेट एवं यूरिनल का निर्माण तथा गीले-सूखे कचरे के शत-प्रतिशत प्रोसेसिंग शुरू की गई. इसी दरमियान 2018 एवं 2019 में शहर के नागरीकों जन प्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों, रहवासी एवं बाजार, मीडिया साथियों एवं नगर निगम इन्दौर के सफाई कर्मियों तथा अन्य अधिकारियों को इस अभियान में शामिल किया.
लोगों की आदतें बदलीं :इसी दरमियान नगर निगम के तत्कालीन कमिश्नर रहे मनीष सिंह ने नगर निगम की जो राशि कचरे के निपटान में खर्च होती थी, उस राशि से कचरा गाड़ी खरीद कर कुछ वार्ड में पायलट प्रोजेक्ट के तहत डोर टू डोर कचरा कलेक्शन शुरू किया. इसके बाद जरूरत के मुताबिक गीले और सूखे कचरे को अलग किए जाने लगा. यही आदत नगर निगम ने अभियान चलाकर शहर भर के लोगों को डलवाई और कचरा कलेक्शन एवं परिवहन को लेकर कलेक्शन पॉइंट और गार्बेज स्टेशन तैयार किए गए.