इंदौर। पंजाब के मोहाली में तैयार गेहूं की रंगीन किस्मे अब मालवा निमाड़ के खेतों में पहुंची. देशभर में गेहूं की पैदावार बढ़ाने के प्रयासों और नए नए शोध के बीच अब मालवा निमाड़ के खेतों तक गेहूं की ऐसी किस्म में पहुंची है, जिसकी रोटियां काली सफेद और बैंगनी रंग की होंगी. दरअसल कनक नाम की गेहूं की नस्ल को अंचल के कई किसानों ने अपने खेतों में बोया है. किसानों द्वारा दावा किया जा रहा है कि गेहूं की कनक नामक यह नस्लें ज्यादा पौष्टिक होगी, लेकिन भारत सरकार के गेहूं अनुसंधान केंद्र ने इस गेहूं की किस्म को मान्यता नहीं दी है. लिहाजा किसानों को इस गेहूं को बेचने के लिए फिलहाल बाजार मुहैया नहीं हो पा रहा है.
इंदौर, उज्जैन, खंडवा, खरगोन समेत कई जिलों में अब गेहूं की सामान्य किस्म के अलावा कनक नामक काले गेहूं का उत्पादन किया जा रहा है. माना जा रहा है कि यह गेहूं सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक पौष्टिक है. लिहाजा अच्छी कमाई के लालच में शुरुआती दौर में तो कई किसानों ने इस गेहूं को 100रुपए से 200रुपए प्रति किलो के भाव में बेचा, लेकिन अब इस गेहूं को बाजार नहीं मिल पा रहा है.
राष्ट्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार कनक नामक यह गेहूं मोहाली स्थित गेहूं अनुसंधान की लैब में एक महिला वैज्ञानिक द्वारा विकसित किया गया है. जिसे निजी स्तर पर प्राइवेट कंपनियों द्वारा किसानों को बेचा गया. बीते साल उज्जैन के किसानों ने इसी तरह का गेहूं बोया था. जिसे खाद्य मानकों और बुवाई के परिणामों को जांचे बिना भारत सरकार ने मान्यता नहीं दी थी. इसके अलावा इस गेहूं को बिना जांचे परखे किस्म नहीं मारने के कारण किसानों को इस गेहूं को बोने की सलाह भी नहीं दी गई थी. हालांकि इसके बावजूद कई किसानों ने अपने-अपने खेतों में कनक गेहूं को बोया है.
इस गेहूं की पैदावार से जुड़े किसानों का दावा है कि काले गेहूं की तासीर प्रचलित गेहूं से अधिक पोस्टिक है. जिसमें एंथो साइन इन की मात्रा अधिक होती है. हालांकि गेहूं अनुसंधान केंद्र ने देसी गेहूं में अभी सभी तत्वों के पाए जाने का दावा किया है.
इसलिए होता है रंगीन गेहूं