इंदौर।लंबे समय तक भारतीय कार बाजार पर शुरुआती दौर में एंबेसडर जैसी यूरोपियन लग्जरी कार का क्रेज रहा है. हालांकि इस कार के बाद यूरोपियन और लग्जरी कारें बिक्री के लिहाज से एशियन कारों से लगातार पीछे रही हैं. जिनमें ब्रिटेन, जर्मन, फ्रेंच आदि देशों की कार कंपनियां शामिल हैं. हालांकि इसके पीछे माना जाता है कि यूरोपियन कारों में आकर्षक डिजाइन और जबरदस्त इंटीरियर किया जाता है, लेकिन एशियन कारों की तुलना में यूरोपियन कारें महंगी होती हैं.
एशियन कारों की तुलना में विदेशी कारें पीछे:इसके अलावा रीसेल वैल्यू के लिहाज से भी एशियन कारों की तुलना में विदेशी कारें पीछे हैं. यही वजह है कि भारतीय कार बाजार में विदेशी कारों की तुलना में देसी कार अभी भी बिक्री के लिहाज से कहीं आगे हैं. हालांकि बीते एक दशक से देश का कार बाजार एसयूवी सेगमेंट पर फोकस कर चुका है. ऐसे में विभिन्न कार कंपनियों के एसयूवी सेगमेंट में भी प्राइस और सिक्योरिटी के साथ लग्जरी सेगमेंट के बीच बिक्री को लेकर भी होड़ है. लेकिन लग्जरी कारों के बढ़ते क्रेज की बदौलत करीब 25 फ़ीसदी कारों के ग्राहक ऐसे भी है जो यूरोपियन कारों के लग्जरी सेगमेंट को प्राथमिकता दे रहे है.
बिक्री बढ़ाना चुनौतीपूर्ण: यही वजह है कि कई बड़े ब्रांड अब लग्जरी कार होने के साथ-साथ भारतीय सड़कों और देश में बढ़ती दुर्घटनाओं के मद्देनजर सिक्योरिटी फीचर को प्राथमिकता देते हुए सिक्योरिटी रैंकिंग हासिल करने में आगे आए हैं. इसके अलावा अब लग्जरी कारों के साथ सिक्योरिटी के फीचर महंगी कारों की बिक्री के लिए भी एक रणनीति साबित हो रहे हैं. जाहिर है इसका असर एशियाई कार बाजार पर दिखेगा. लेकिन भारतीय ग्राहकों के सबसे पहले कीमतों पर फोकस करने के कारण विदेशी और यूरोपियन कारों के लिए अपनी बिक्री बढ़ाना फिलहाल चुनौतीपूर्ण ही है.