इंदौर।सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने वाले गरीब मरीजों की जान इलाज के दौरान यूं तो अस्पताल के डॉक्टर के भरोसे रहती है, लेकिन प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में एक ऐसे भी शख्स हैं. मरीजों की जान बचाने के लिए खुद डॉक्टर भी उनके भरोसे रहते हैं. दरअसल यह शख्स हैं, 82 साल के समाज से भी राधेश्याम साबू. जिन्होंने अस्पताल में भर्ती होने वाले जरूरतमंद और गरीबी और अभाव के कारण जिंदगी और मौत से जूझने वाले मरीजों और उनके परिजनों की हर संभव मदद को ही अपने जीवन का ध्येय बना रखा है. राधेश्याम साबू के अस्पताल परिसर में परपीड़ा नमक संस्था सक्रिय है, जो हर साल एक करोड रुपए से अधिक का सहयोग जरूरतमंद मरीजों के इलाज और विभिन्न कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करती है. जिसके फलस्वरूप बीते ढाई दशक में ऐसे सैकड़ों मरीज हैं जिनकी जान साबू के सामाजिक प्रयासों की बदौलत जान बच सकी है.
कौन हैं रादेश्यमा साबू: दरअसल 82 साल के भोपाल निवासी रहे राधेश्याम साबू 1999 तक भेल भोपाल में सर्विस के बाद रिटायर हुए, तो उन्होंने अपनी मां के सेवाभावी स्वभाव के कारण दूसरों की सेवा करने को ही अपना लक्ष्य बनाने का प्रयास किया. उस दौरान में अपनी संस्था 'परपीड़ा हर' के माध्यम से जन सहयोग से गरीब असहाय और लाचार मरीजों के इलाज में मदद करते थे. 2004 से लेकर 2007 तक भोपाल के माहेश्वरी समाज और प्रेरणा सेवा ट्रस्ट के माध्यम से जब उन्होंने हमीदिया अस्पताल में भर्ती होने वाले जरूरतमंद गरीब मरीजों की हर संभव मदद करने की शुरुआत की, तो उन्हें इस कार्य को करने पर बहुत संतोष और आत्मीय शांति मिली, तो उन्होंने रिटायरमेंट के बाद इस काम को अपना ध्येय बना लिया.
इसके बाद वह भोपाल के हमीदिया अस्पताल में उन मरीजों की मदद करने लगे. जो पैसे नहीं होने के कारण अपना इलाज नहीं कर पाते या फिर अपने मरीज के लिए दवाई अथवा ज़रूरी सामग्री भी नहीं जुटा पाते. लिहाजा उन्होंने अपने परिचितों और दानदाताओं से संपर्क करके वास्तविक और जरूरतमंद गरीब मरीजों की मदद करना शुरू कर दिया. इसके बाद 2008 में वे इंदौर आ गए और यहां उन्होंने यही काम एमवाय अस्पताल में शुरू किया. फिर राधेश्याम साहू का गरीब मरीजों के प्रति जज्बा और समर्पण के कारण देखते ही देखते, उनकी संस्था से कई ऐसे वालंटियर जुड़े साबू की तरह ही गरीब और जरूरतमंद मरीजों की मदद करना चाहते हैं.
फिलहाल इंदौर के एमवाय अस्पताल परिसर में ही उनकी संस्था का परिसर और उनका कार्यालय है. जहां से वह सुबह 7:00 बजे से लेकर फिर देर रात तक गरीब मरीज की सामाजिक आर्थिक और भावनात्मक मदद के लिए तत्पर रहते हैं. इस दौरान वे अपने कार्यालय से जरूरतमंदों को फल फ्रूट के अलावा दवाइयां और जरूर की हर सामग्री उपलब्ध कराते हैं.