इंदौर। देश में राजा महाराजाओं का शासन भले खत्म हो चुका हो, लेकिन उनकी तरफ से स्थापित परंपराएं आज देश के विभिन्न इलाकों में उत्सव का रूप ले चुकी हैं. मध्य प्रदेश के इंदौर में ऐसी ही परंपरा है पहलवानों और अखाड़ों द्वारा अपने राजा के समक्ष शस्त्र कला के प्रदर्शन की परंपरा की. ये 200 साल बाद भी अनंत चतुर्दशी के अवसर पर हूबहू निभाई जा रही है. दरअसल, अनंत चतुर्दशी पर रात में पूरा शहर जहां अखाड़े का प्रदर्शन देखने सड़कों पर उतरता है. वहीं, अखाडों के शस्त्र प्रदर्शन के साथ अनंत चतुर्दशी पर निकल जाने वाली झांकियां पुरस्कृत की जाती हैं.
1721 में शुरू हुई थी परंपरा: दरअसल, प्राचीन एवं धार्मिक मान्यताओं को निभाने वाले अनंत चतुर्दशी की रात शस्त्र प्रदर्शन करने वाले इन अखाड़ों के पूर्वज और कई नामचीन पहलवान सन 1721 के बाद से देश की आजादी तक होलकर राजवंश की मजबूत सेना में सैनिकों से लेकर अहम ओहदेदार पदों पर रहे हैं. उस जमाने में भी सैनिकों के शस्त्र कौशल और सैन्य क्षमता की बदौलत होलकर राजवंश ने मालवा निमाड़ के विभिन्न इलाकों पर शासन करते हुए विभिन्न इलाकों पर अपना अधिपत्य जमाया.
यही वजह थी कि राजवंश के शासक हमेशा मालवा के अखाड़े और शस्त्र विद्या को तरह-तरह से प्रमुखता देते हुए पहलवानों को प्रोत्साहित करते रहे. इसी दौर में नए-नए पहलवानों को तैयार करने के लिए फल व्यायाम शालाएं विकसित हुईं. इस समय लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के निर्देशन में महिलाओं के सैन्य दल को भी प्राथमिकता मिली और महिलाओं ने भी शस्त्र प्रदर्शन सीखा. उस जमाने में भी इन्हीं अखाड़े और व्यायाम शालाओं के जो पहलवान विभिन्न अवसरों पर शासको के सामने उत्कृष्ट शस्त्र प्रदर्शन करते थे. उन्हीं का चयन होलकर राजवंश की सेना के लिए अलग-अलग पदों पर होता था.
देश के आजाद होने के बाद भले होलकर राजवंश की सेना नहीं बची हो लेकिन इंदौर में अखाड़े के शस्त्र प्रदर्शन की. यह परंपरा अब भी अपने प्राचीन रूप में भव्यता लिए हुए कायम है. इस दौरान शहर की सभी व्यायाम शालाओं के खलीफा (पहलवानों के गुरु और सीनियर पहलवान) के निर्देश पर सभी पहलवान मिलाकर अलग-अलग शस्त्र विद्या दिखाने की तैयारी करते हैं. इस प्रदर्शन में न केवल पुरुष पहलवान बल्कि महिला अखाड़े की पहलवान भी अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र का प्रदर्शन हैं. इसके लिए चल समारोह में सारे अस्त्र शास्त्र को सजाकर जुलूस में शामिल किया जाता है.