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यहां मौजूद है दुनिया भर की दुर्लभ घड़ियों का अनूठा 'म्यूजियम', 200 साल पुराना घड़ी भी करता है टिक-टिक

इंदौर के भंवरकुआं में रहने वाले 78 वर्ष के अनिल भल्ला को बचपन से घड़ियों का शौक था. अब उनका आलीशान बंगला दुनिया की नायाब घड़ियों को संजोए रखने के लिए म्यूजियम बन गया है. भल्ला की मानें तो समय देखने के लिए उपयोग की जाने वाली घड़ियां सिर्फ समय ही नहीं गौरवशाली इतिहास को भी बयां करती हैं. भल्ला का दावा है कि दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जहां की घड़ी उनके कलेक्शन में न हो. वे बताते हैं कि यहां पर ऐसी कई घड़ी हैं जो दुनिया के किसी रॉयल फैमिली के पास नहीं होंगी. उनके पास सन 1700 से पहले की भी घड़ियां हैं.

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Published : Apr 2, 2023, 6:16 PM IST

Updated : Apr 2, 2023, 10:58 PM IST

indore Clock Museum
इंदौर घड़ियों का म्यूजियम

इंदौर में दुर्लभ घड़ियों का अनूठा म्यूजियम

इंदौर। समय देखने के लिए उपयोग की जाने वाली घड़ियां सिर्फ समय ही नहीं बताती बल्कि गौरवशाली इतिहास को भी बयां करती हैं. ऐसी ही दुर्लभ घड़ियों का अनूठा संग्रहालय इंदौर में है. यहां एक छत के नीचे 650 घड़ियां हैं ये सभी आज भी सटीक समय बता रही हैं. इंदौर के अनिल भल्ला बचपन से घड़ी के काफी शौकीन थे. अब उन्होंने एक संग्रहालय बनाया और यहां तरह-तरह की घड़ियों को एकत्र करने काम किया. यहां करीब 7 दशकों से घड़ियों की टिक टिक में ही उनकी जिंदगी बसी है.

देश का इकलौता म्यूजियम:इंदौर के भंवरकुआं क्षेत्र में रहने वाले 78 साल के अनिल भल्ला का आलीशान बंगला उनके रहने के लिए नहीं दुनिया की नायाब घड़ियों को संजोए रखने के लिए देश में इकलौता म्यूजियम है. तरह-तरह की घड़ियों को खरीदने का शौक उन्हें अपने दादा हुकूमत राय भल्ला से विरासत में मिला. जब वे विदेश गए थे तो फ्रांस और इंग्लैंड से दुर्लभ स्टेचू क्लॉक लेकर आए थे. दादाजी के बाद इसी क्रम को उनके पिता ने आगे बढ़ाया. 15 साल की उम्र से अनिल भल्ला ने अपने बंगले को तरह-तरह की देसी और विदेशी घड़ियों से समृद्ध किया है. अपने दादा और पिता की तरह ही उन्होंने भी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अपनी इस विरासत को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

अब कहीं नहीं हैं ये घड़ियां:अनिल भल्ला का दावा है कि ''दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं होगा जहां की घड़ी उनके कलेक्शन में नहीं होगी.'' अनिल भल्ला बताते हैं कि उनके घर में ऐसी कई घड़ी हैं जो दुनिया के किसी रॉयल फैमिली या बिलेनियर के पास भी नहीं होगी. उनके पास सन 1700 से पहले की घड़ियां हैं. जब घड़ियों में सिर्फ एक ही कांटा आता था. वह भी सिर्फ घंटे बताने का काम करता था. क्योंकि कांच का उपयोग भी 1830 के बाद शुरू हुआ था. बिना कांच की घड़ियां अलग साइज और मॉडल में तैयार होती थी. कुछ घड़ियां अपने निर्धारित बैलेंस पर चलने वाले पेंडुलम वाली हैं तो कुछ स्टील बॉल से चलने वाली.''

यहां से आते हैं कारीगर:इन घड़ियों में अधिकांश हाथों से बनी हुई हैं. जिनके कारीगर अब पूरी दुनिया में नहीं हैं. लिहाजा इन घड़ियों का रखरखाव खुद अनिल भल्ला ही करते हैं. कई बार गड़बड़ होने पर इन्हें सुधारने वाले कारीगर मुंबई और चेन्नई से बुलाने पड़ते हैं. अनिल भल्ला के पास हवाई जहाज और पानी के जहाज में इस्तेमाल की जाने वाली घड़ियों के अलावा हीरे जवाहरात और अन्य रत्नों से सजी हुई नायाब घड़ियां भी हैं.

अनूठे संग्रहालय में दुर्लभ घड़ियां:उनके अनूठे संग्रहालय में यूनाइटेड स्टेट की दुर्लभ घड़ियां के अलावा ग्रैंडफादर घड़ियां भी हैं. इसके अलावा रेलवे गार्ड द्वारा उपयोग की जाने वाली पॉकेट वॉच के अलावा धूप से समय बताने वाली नायाब घड़ियां भी हैं. उन्होंने इन्हें सुरक्षित रखने के लिए अपने घर के गार्डन और बंगले की बाहरी दीवारों और लगभग सभी कमरों में इनके लिए जगह बनाई है. 2013 में घड़ियों के अद्भुत कलेक्शन के लिए अनिल भल्ला का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है अनिल भल्ला बताते हैं कि ''दुनिया भर में सबसे ज्यादा समृद्ध घड़ी फ्रांस की रही है, उसके बाद इंग्लैंड और जर्मनी की घड़ियां नायाब होती हैं. इसी स्तर की घड़ियां यूएस की है जो अब मिलना मुश्किल है.''

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बंगला बना म्यूजियम:78 साल के अनिल भल्ला का पूरा जीवन घड़ियों को समर्पित है. वह अपने नियमित कामकाज के बाद सिर्फ घड़ियों की देखभाल और उनकी चाबी भरने में ही समय बिताते हैं. रविवार का दिन घड़ियों की साफ-सफाई और देखरेख का होता है. जब उन्हें समय नहीं मिलता तो उनकी पोती भूविका यह काम संभालती है. जिस का मानना है कि आज भले घड़ियों का दौर बदल चुका है लेकिन उनके दादाजी के पास जो घड़ियां हैं उनके आसपास आज के दौर की कोई भी घड़ी नहीं टिकती. क्योंकि अब दुनिया में इन्हें बनाने वाले और इस तरह की घड़ियां नहीं है. इसलिए आने वाली युवा पीढ़ी को भी इन घड़ियों को देखकर इनके गौरवशाली इतिहास को जानना चाहिए. अनिल भल्ला अब अपने घर को भविष्य में म्यूजियम में तब्दील करना चाहते हैं. लेकिन वह कोई भी घड़ी बेचना नहीं चाहते. उनका मानना है कि आने वाली पीढ़ियां इन घड़ियों को देखकर यह जान सके कि जिन दुर्लभ घड़ियों ने दुनिया के स्वर्ण काल से लेकर आधुनिक काल तक का समय बताया है. वह आज भी समय बताने में उतनी ही सटीक सशक्त और समृद्ध हैं और रहेंगी.

Last Updated : Apr 2, 2023, 10:58 PM IST

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