इंदौर। दिवाली के दूसरे दिन इंदौर के गौतमपुरा में आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध आखिरकार दूसरे साल भी टल गया. हालांकि स्थानीय कांग्रेस विधायक ने इस परंपरा को जारी रखने के लिए लोगों से आह्वान किया था. जिसके चलते पुलिस प्रशासन को युद्ध रोकने के लिए गौतमपुरा में दिन भर डटे रहना पड़ा. शाम को हिंगोट की दोनों टीमें कहीं आमने-सामने ना उतर आए, इसलिए पूरे इलाके में पुलिस ने मार्च पास्ट भी किया. हालांकि कुछ लोगों ने घरों से हिंगोट छोड़े, लेकिन पुलिस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.
दरअसल इंदौर के गौतमपुरा में दिवाली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर परंपरागत रूप से हिंगोट युद्ध बीते 200 साल से होता रहा है. गोटमार मेले की तरह ही इंदौर के प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध में क्षेत्र के 2 गांव की दो टीमें मैदान में उतरती है, जो एक दूसरे पर जलते हुए हिंगोट से हमला करती है. इस आयोजन में रॉकेट की तरह हिंगोट जलता हुआ दूसरे टीम के सदस्यों पर गिरता है. जिससे कई लोगों की आंखें चोट लगने से खराब भी हो चुकी हैं. इसके अलावा हर साल कुछ लोग यहां हिंगोट के कारण घायल भी हो जाते थे.
युद्ध देखने के लिए आते थे हजारों लोग
प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध को देखने के लिए इंदौर और आसपास से हजारों लोग दशकों से जुटते रहे हैं. पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण यह हिंगोट युद्ध टल गया था. हालांकि इस बार उम्मीद जताई जा रही थी कि प्रति वर्ष की तरह दिवाली के दूसरे दिन यह आयोजन होगा. लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने स्पष्ट कर दिया था कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के चलते यह कार्यक्रम नहीं होगा.
इसके बावजूद विधायक के आह्वान के कारण गौतमपुरा के प्रशासन और पुलिस को आशंका थी कि शाम या रात तक कोई ना कोई हिंगोट लेकर हिंगोट मैदान में युद्ध के लिए पहुंच सकता है. इसलिए सुबह से ही प्रशासन ने पूरे मैदान को ही छावनी बना दिया था. यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस प्रशासन ने डेरा डाला हुआ था. इसके बाद पुलिस फ्लैग मार्च भी निकाला. पुलिस की सक्रियता देखते हुए कोई भी इस मैदान में नहीं पहुंचा.
सालों पुरानी परंपरा हिंगोट युद्ध
पूरे देश में सिर्फ इंदौर के गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन धोक पढ़वा पर प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध की परंपरा रही है. गौतमपुरा में परंपरानुसार हर साल दीपावली के अगले दिन पड़वा पर शाम को हिंगोट युद्ध खेला जाता है. इसमें तुर्रा (गौतमपुरा) व कलगी (रूणजी) के दल आमने-सामने एक-दूसरे पर हिंगोट (अग्निबाण) फेंकते हैं. यह अग्निबाण हिंगोरिया के पेड़ों पर लगने वाले हिंगोट फल से बनाया जाता है.
फल को खोखला कर उसमें बारूद भरकर बत्ती लगाई जाती है और फिर दोनों दल इसे एक-दूसरे पर फेंकते हैं. इस बार क्षेत्र के जंगल में हिंगोरिया के पेड़ कम होने से योद्धाओं को हिंगोट फल नहीं मिला तो जुनूनी योद्धा यह फल लेने उज्जैन, खाचरौद, नागदा और भाटपचलाना के जंगल तक गए. योद्धाओं ने घर में हिंगोट तैयार करना शुरू कर दिया है.
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