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12 साल बाद मिला ब्लड कैंसर का तोड़: IIT इंदौर ने खोजी दवा - ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर

IIT इंदौर ने ब्लड कैंसर से लड़ने के लिये नई दवा एस्पराजिनेस एम एस्पार तैयार की है. यह दवा कम खर्च में बिना साइड इफेक्ट ल्यूकेमिया जैसे कैंसर से निजात दिलाएगी. बता दें कि इस दवा के लिए आईआईटी इंदौर पिछले 12 वर्षों से शोध कर रहा था.

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12 साल बाद मिला ब्लड कैंसर का तोड़

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Published : Mar 28, 2021, 5:03 PM IST

Updated : Mar 30, 2021, 10:28 AM IST

इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर ने एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (all) के उपचार के लिए प्रोटीन इंजीनियरिंग दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए एक नया ड्रग एस्पराजिनेस एम एस्पार तैयार किया है. यह दवा मौजूदा दवा के मुकाबले कम खर्च में बिना साइड इफेक्ट के रक्त कैंसर से लड़ने में मदद करेगी.

12 साल से चल रहा था दवा के लिए शोध

आईआईटी इंदौर द्वारा 12 वर्षों से लगातार रिसर्च कर ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर के लिए दवा तैयार करने का प्रयास किया जा रहा था. ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर है. जिसके पीड़ितों में बच्चों की संख्या एक चौथाई होती है. भारत में हर साल लगभग 25000 नए मामले पाए जाते हैं. सभी रोगियों को उपचार के लिए वर्तमान में एस्परजाइनेस का बार बार उपयोग करना गंभीर दुष्प्रभाव का कारण बनता है. जैसे एलर्जी न्यूरोटॉक्सीसिटी इसके प्रभाव होते हैं लेकिन इस दवा के माध्यम से किसी भी तरह के साइड इफेक्ट नहीं होंगे.

ब्लड कैंसर के भारत में हर साल लगभग 25000 नए मामले पाए जाते हैं

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बीमारी से ठीक होकर दोबारा बीमारी की चपेट में आने वालों के लिए होगा कारगर

आईआईटी द्वारा तैयार किए गए ड्रग के माध्यम से ज्यादा बीमारी को ठीक करने में फायदा होगा. वहीं सबसे अधिक इसका फायदा बीमारी से ठीक होकर पुनः बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों को भी होगा. वर्तमान में जिन ड्रग का प्रयोग किया जाता है, उनसे मानव अंग पर काफी प्रभाव पड़ता है और पुनः बीमारी की चपेट में आने पर वर्तमान ड्रग का अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इस दवा से काफी हद तक फायदा होगा.

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जल्द होगा दवा का ट्रायल
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर ने मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर एडवांस्ड सेंटर फॉर ट्रीटमेंट रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर और मुंबई की बायोटेक के साथ अनुबंध किया गया है. ड्रग का क्लिनिकल ट्रायल यहीं पर होगा जल्द ही पहले दौर में करीब 25 लोगों पर इस ड्रग का ट्रायल किया जाएगा. जिसके माध्यम से दवाई की सुरक्षा सहनशीलता आदि की जांच की जाएगी.

संस्थानों का मुख्य काम रहा अनुसंधान

आईआईटी इंदौर के कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर निलेश कुमार जैन ने कहा कि अनुसंधान हमेशा से आईआईटी जैसे संस्थानों का मुख्य काम रहा है. मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस तरह का विकास महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दुष्प्रभाव में महत्वपूर्ण कमी लाएगा और उपचार की लागत को कम करेगा जब तक हम तार्किक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते संस्थान चरण एक और चरण दो परीक्षणों पर काम करता रहेगा.

Last Updated : Mar 30, 2021, 10:28 AM IST

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