इंदौर। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के दिन मध्यप्रदेश के कई इलाकों में हिंगोट युद्ध की परंपरा है. इसमें लोग एक-दूसरे पर जलते हुए आग के गोले जिन्हें हिंगोट कहा जाता है, फेंकते हैं. इंदौर से 55 किलोमीटर दूर स्थित गौतमपुरा में भी सोमवार को हिंगोट युद्ध का आयोजन किया गया, जिसमें करीब 19 लोग घायल हो गए, जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद वापस भेज दिया गया. इसमें एक दल गौतमपुरा का 'तुर्रा' और दूसरा रुणजी गांव का 'कलंगी' दल था, दोनों दलों के सदस्यों ने एक-दूसरे पर हिंगोट से हमला किया.
देपालपुर क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी एसडीओपी रामकुमार राय ने बताया कि हिंगोट युद्ध के दौरान पुख्ता सुरक्षा-व्यवस्था की गई थी, इसकी वजह से किसी को भी कोई गंभीर चोट नहीं लगी है. उन्होंने कहा कि मैदान के चारों ओर जाली लगाई गई थी, जिससे हिंगोट बाहर नहीं आ सकता था. उन्होंने कहा कि पिछले साल की तुलना में दोगुने पुलिस बल की तैनाती की गई थी.
युद्ध के लिए ऐसे तैयार होता है हिंगोट
हिंगोट युद्ध की ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. हिंगोट एक फल होता है. लेाग लगभग एक माह पहले से कंटीली झाड़ियों में लगने वाले हिंगोट को जमा करते हैं, उसके अंदर के गूदे को अलग कर दिया जाता है और उसके कठोर बाहरी आवरण को धूप में सुखाने के बाद उसके भीतर बारूद और कंकड़-पत्थर भरे जाते हैं. बारूद भरे जाने के बाद ये हिंगोट बम का रूप ले लेता है. इसके एक सिरे पर लकड़ी बांधी जाती है, जिससे वह रॉकेट की तरह आगे जा सके. एक हिस्से में आग लगाने पर हिंगोट रॉकेट की तरह घूमता हुआ दूसरे दल की ओर बढ़ता है.