इंदौर।व्यस्त जीवन शैली और गलत खानपान के अलावा दवाओं के साइड इफेक्ट के कारण देशभर में किडनी रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. आलम यह है कि डॉक्टरों के पास पहुंचने वाला हर दसवां मरीज किसी न किसी किडनी की बीमारी से ग्रसित है. ऐसे मरीजों की संख्या बीते दस सालों में 85 फीसदी तक बढ़ गई है. लिहाजा अब गंभीर किडनी रोगियों को बचाने का एकमात्र उपाय किडनी दान ही बचा है, जिसे लेकर प्रदेश के मेडिकल हब इंदौर में किडनी दान को लेकर मिलेजुले प्रयासों के जरिए 75 से भी ज्यादा लोगों की जान बचाई जा चुकी है.
देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर अब किडनी रोगियों को मिलने वाले जीवनदान का केंद्र भी बन रहा है. यहां जिंदगी और मौत से जूझते मरीजों को ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के जरिए जीवनदान देने के लिए 2015 में गठित सोसायटी फॉर ऑर्गन डोनेशन के साथ मेडिकल कॉलेज और प्रशासन के संयुक्त प्रयासों से अब तक 75 से भी ज्यादा लोगों को किडनी दान की जा चुकी है. इतना ही नहीं ह्रदय फेफड़े और लीवर की बीमारी से ग्रसित कई जरूरतमंद मरीज भी अंगदान के जरिए जिंदगी की सौगात पा चुके हैं. अंगदान के लिए यहां 2014 से अब तक 39 बार ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा चुका है जिसके फलस्वरूप गुड़गांव, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, जैसे बड़े शहरों में शहर के दानदाताओं के अंग प्रत्यारोपण के लिए भेजे गए हैं.
किडनी डे स्पेशल: यहां अंगदान से मरीजों को मिल रही है जिंदगी की सौगात
इंदौर शहर स्वच्छता में नंबर वन होने के साथ-साथ अब किडनी रोगियों को मिलने वाले जीवनदान का केंद्र भी बन रहा है. अंगदान के लिये इंदौर में बीते सालों में 39 बार ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा चुका है.
अंगदान कराने के लिये 200 सेवादारों की टीम
इंदौर में ऑर्गन डोनेशन की अगुवाई करने वाले मुस्कान ग्रुप के जीतू बगानी की टीम में 200 ऐसे सक्रिय सेवादार हैं जो शहर के तमाम अस्पतालों के आईसीयू के संपर्क में रहते हुए ब्रेन डेड होने वाले लोगों के परिजनों को किडनी दान के लिए प्रेरित करते हैं. इन्हीं मुस्कान ग्रुप के सेवादारों की काउंसलिंग का परिणाम है कि इंदौर में सर्वाधिक 39 बार ग्रीन कॉरिडोर के जरिए अंग प्रत्यारोपण संभव हो सका है. हालांकि कोरोना काल में अंग प्रत्यारोपण की दर में कमी आई है, लेकिन अंगदान कराने के लिए सक्रिय रहने वाले सेवादारों के जज्बे में कोई कमी नहीं आई है.
अब LIVE ट्रांसप्लांट और SWAP ट्रांसप्लांट भी
इंदौर में ऑर्गन डोनेशन कमेटी की सहमति के बाद अब स्वेप ट्रांसप्लांट भी हो रहे हैं. इस प्रक्रिया में अलग ब्लड ग्रुप के मरीज को किडनी दान का लाभ देने के लिए अन्य ब्लड ग्रुप के मरीज के लिए पीड़ित किडनी रोगी के पक्ष से ही किडनी का दान कराया जाता है. इसके अलावा लाइव ट्रांसप्लांट में पहले से ही दान दाता और मरीज की पहचान स्पष्ट होती है. साथ ही किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसके अंगों का दान परिजनों की सहमति से संबंधित अस्पतालों के जरिए जरूरतमंदों की जान बचाने के लिए किया जाता है.
ट्रांसप्लांट के बाद छह माह की देखभाल जरूरी
मानव शरीर कोई भी बाहरी तत्व आसानी से स्वीकार नहीं करता है. यही वजह है कि किडनी ट्रांसप्लांट के पहले मरीज की प्रतिरोधक क्षमता कम करनी पड़ती है, इसके बाद किडनी ट्रांसप्लांट होता है. ट्रांसप्लांटेशन के बाद भी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण इस दौरान मरीज को संक्रमण का खतरा बना रहता है. इसलिए ऐसे मरीजों को सुरक्षित अस्पतालों में रखना होता है.
डायलिसिस बना उपचार का विकल्प
दरअसल शरीर में किडनी का काम अस्वच्छ रक्त को फिल्टर करके स्वच्छ बनाना है. जिससे शरीर के अंगों को फिल्टर किए हुए रक्त की आपूर्ति होती रहे. लेकिन जब किडनी खराब होने लगती है तो फिल्टर किए गए रक्त की सप्लाई नहीं होती. ऐसी स्थिति में विकल्प के बतौर मरीजों को डायलिसिस की सुविधा देनी होती है. इस प्रक्रिया में मरीज के रक्त को डायलिसिस मशीन के जरिए स्वच्छ करते हुए पुनः शरीर में छोड़ा जाता है. यह एक जटिल प्रक्रिया है लेकिन किडनी रोगियों के लिए रक्त को फिल्टर करने के लिए इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है. फिलहाल इंदौर में तीस संस्थाओं में मरीजों के लिए डायलिसिस की सुविधा है जिनमें निजी अस्पतालों में करीब बारह सौ और शासकीय अस्पतालों में चार सौ से छह सौ रूपये में मरीजों को डायलिसिस की सुविधा मिल रही है.