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जर्मनी की लेजर लाइट से रोशन होगी पवनपुत्र की विशाल प्रतिमा, सीने पर होगा चालीसा का चित्रण - Pritreshwar Hanuman's soul

इंदौर के पितृ पर्वत पर पवनपुत्र की 108 टन वजनी प्रतिमा विराजित कर दी गई है. साथ ही इस प्रतिमा को जर्मनी से लायी गई लेजर लाइट से सजाया गया है.

Germany's laser light will illuminate the huge statue of Pawanputra in indore
पित्रेश्वर हनुमान की प्राण प्रतिष्ठा

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Published : Feb 24, 2020, 10:57 AM IST

इंदौर। शहर के पितृ पर्वत पर स्थापित की गई विशाल हनुमान जी की 108 टन वजन वाली प्रतिमा रात में भी दूर-दूर से देखी जा सके इसके लिए यहां जर्मनी से लाकर लेजर लाइट लगाई गई है. इस लाइट की खासियत है कि इससे प्रतिमा के सीने पर हनुमान चालीसा का चित्र-वर्णन भी होगा. साथ ही जिस पर हनुमान चालीसा सुनाई देगा.

पितृ पर्वत पर पित्रेश्वर हनुमान का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव 3 मार्च तक चलेगा. इसके तहत सोमवार को शहर के विद्या धाम से लेकर पित्रेश्वर धाम तक महिलाओं की शोभायात्रा भी निकाली जाएगी. यहां स्थापित 108 टन वजनी हनुमानजी की प्रतिमा को पंच धातु का उपयोग कर पूरी तरह वास्तु के हिसाब से बनाया गया है. वास्तु के अनुसार प्रतिमा का मुंह दक्षिण-पश्चिम है पितृ पर्वत पर मूर्ति स्थापना का विचार 2006 में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को आया था.

उसके बाद से लगातार काम करने के बाद 2020 में पूरा हुआ. मूर्ति का निर्माण ग्वालियर के कारीगर प्रभात राय के सान्निध्य में 125 कारीगरों ने सात साल में पूरा किया. मूर्ति को 264 भागों में तीन साल में ग्वालियर से इंदौर लाया गया. पितृ पर्वत पर मूर्ति के 264 भागों को जोड़ने में दो साल का समय लगा. प्रतिमा पर फ्रांस से मंगाए गए 150 किलो 99 कैरेट एक्रिलिक गोल्डन पेंट का उपयोग किया गया है, जो देश में पहली बार किसी प्रतिमा पर उपयोग किया गया है. वहीं चबूतरे के अंदर लाइब्रेरी, पवनसुत से जुड़ा साहित्य है.

सर्वाधिक पॉजिटिव ऊर्जा देने वाला स्थान

पितृ पर्वत पर प्रतिमा की स्थापना का निर्णय होने के बाद पर्वत के सबसे ऊंचे स्थान की ऊर्जा नापी गई. जहां सबसे ज्यादा ऊर्जा मिली वहीं मूर्ति स्थापित की गई. जिस तरह मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं, उसी तरह मूर्ति में भी सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान और मूलधार सात चक्र स्थापित किए गए हैं. इन चक्रों से मूर्ति की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है, जिसे वास्तु विज्ञान में षड्वर्ग के हिसाब से बनाया गया है.

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