इंदौर। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए पूरी तरह से गांवों और शहरों की चौपालों पर चुनाव की बातें शुरू हो गई हैं. फिर से विधायक बनने के लिए कई दावेदार टिकट हासिल कर मैदान में घर-घर दस्तक दे रहे हैं. चुनाव में नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद चुनाव प्रचार सामग्री की दुकानें भी सजना शुरु हो गई हैं, लेकिन अभी तक इन दुकानों पर सन्नाटा पसरा हुआ है.
एक तरफ सोशल मीडिया तो दूसरी तरफ कोरोना की गाइडलाइन के कारण व्यापारियों का व्यापार पूरी तरह से खत्म होने की कगार पर है. व्यापारियों को उम्मीद थी कि उपचुनाव एक उम्मीद की किरण बनकर आएगा, लेकिन उनका व्यापार आशा के अनुरूप उठ नहीं पा रहा है. विश्व का सबसे महंगा इलेक्शन भारत में माना जाता है, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च होने की बात कही जाती है, लेकिन व्यापारियों का कहना है कि उनके पास कोई झंडा खरीदने तक नहीं आया.
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व्यापारियों को निराशा लगी हाथ
मध्य प्रदेश में उपचुनाव का प्रचार-प्रसार जोरों पर है. हर प्रत्याशी अपने-अपने इलाके में जोर-शोर से चुनाव प्रचार कर मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में लगा हुआ है, लेकिन उपचुनाव होने के बावजूद चुनाव प्रचार सामग्री से जुड़े हुए कारोबारी निराश हैं. प्रदेश के कई शहरों में छोटे-छोटे कारोबारी हर चुनाव में बड़ी मात्रा में माल सप्लाई करते हैं, लेकिन इस बार के उपचुनाव से उन्हें भी निराशा हाथ लगी है.
प्रचार सामग्री से जुड़े कारोबारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट
एक और कोरोनावायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण 6 महीने से उनका व्यापार पूरी तरह से बंद है तो वहीं दूसरी ओर उपचुनाव में कोरोना के कारण सीमित संख्या से भी उनके व्यापार पर सीधा असर पड़ रहा है. हालात यह हैं कि अब प्रचार सामग्री से जुड़े कारोबारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. राजनीतिक पार्टियां पहले से अधिक खर्च अपने उपचुनाव पर कर रही हैं. प्रदेश में सरकार में वापसी के लिए एक और जहां कांग्रेस लगातार मशक्कत कर रही है तो वहीं अपनी सरकार बचाने के लिए भी बीजेपी पुरजोर प्रयास कर रही है.