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ओरल कैंसर डिटेक्ट करेगी इंदौर में विकसित डिवाइस, ऐसे करती है काम

इंदौर में ओरल कैंसर (Oral cancer) को डिटेक्ट (detect) करने के लिए एक लेजर डिवाइस तैयार कर ली गई है. ओंकोडायग्नोस्कोप डिवाइस फर्स्ट स्टेज पर कैंसर का पता लगा सकती है. सोमवार को इंदौर एयरपोर्ट पर शिविर लगा कर लोगों के कैंसर की जांच की गई.

oncodiagnoscope
ओंकोडायग्नोस्कोप

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Published : Jul 13, 2021, 3:17 PM IST

इंदौर। दुनिया भर में जिस तेजी से कैंसर की बीमारी फैल रही है, उतना ही चुनौतीपूर्ण इसकी पहचान कर पाना है. यही वजह है कि देरी से बीमारी की पहचान के कारण भारत जैसे देश में हर साल हजारों लोगों की मौत हो रही है. इंदौर में पहली बार कैंसर के संक्रमण की तत्काल जांच के साथ लोगों को इस भयावह बीमारी से बचाने के लिए राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र ने एक ऐसा डिवाइस विकसित किया है.

इस डिवाइस से पल भर में संभावित मरीज की बीमारी का पता लगाया जा सकता है. ओंकोडायग्नोस्कोप कहे जाने वाले इस डिवाइस से अब न केवल अस्पतालों में बल्कि एयरपोर्ट जैसे सार्वजनिक स्थानों पर कैंसर के जांच शिविर आयोजित किए जा रहे हैं.

मुंह में विकिरण भेजकर की जाती है स्कैनिंग.

हर साल आते हैं 10 लाख से ज्यादा मामले
दरअसल, देश में मुंह के कैंसर (Oral cancer) के हर साल करीब 10 लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. यह संक्रमण उन लोगों में ज्यादा पाया जा रहा है, जो तंबाकू का सेवन करते हैं अथवा अधिक शराब या मुंह के अंदर रोग से पीड़ित होते हैं. ऐसे तमाम मरीजों में बीमारी का पता तब चल पाता है, जब कैंसर का संक्रमण सेकेंड या थर्ड स्टेज पर पहुंच जाता है.

अब तक बायोप्सी माना जाता था गोल्डन स्टैंडर्ड
फिलहाल कैंसर की जांच के लिए बायोप्सी को ही गोल्डन स्टैंडर्ड माना जाता है. यह जांच भी उन मरीजों की ही हो पाती है, जो बीमारी बढ़ने के बाद डॉक्टरों तक पहुंच पाते हैं. लिहाजा, बीमारी का इलाज काफी देर से हो पाने के कारण मरीजों को बचाना मुश्किल हो जाता है. इंदौर स्थित राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र (आरआर कैट) ने अपने इस खास अविष्कार के जरिए परमाणु विकिरण पर आधारित ओंकोडायग्नोस्कोप विकसित किया है.

ऐसे काम करता है डिवाइस
इस छोटे से डिवाइस में मौजूद Scanner के जरिए मरीज के मुंह में विकिरण के जरिए मुंह की कोशिकाओं और टिशु के ऐसे बदलाव की पहचान की जाती है, जो भविष्य में कैंसर के रूप में तब्दील हो सकते हैं. डिवाइस के स्कैनर को मुंह में डालते ही मशीन रूखी त्वचा के बदलाव को स्क्रीन पर दर्शाती है.

इसके बाद कैंसर संबंधी बदलाव की आशंका के चलते डॉक्टर मरीज की पहचान कर लेते हैं. संबंधित मरीजों की बीमारी की पुष्टि के लिए उनकी बायोप्सी कराई जाती है. इससे मरीज की बीमारी early-stage में ही पता चल जाती है, जिसके फलस्वरूप शुरुआती दौर में ही इलाज संभव हो जाता है. मरीज की जान बच जाती है.

टाटा मेमोरियल समेत कई अस्पतालों में जांच शुरू
ओंकोडायग्नोस्कोप का उपयोग फिलहाल टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई के अलावा होमी भाभा कैंसर सेंटर वाराणसी और पंजाब में हुआ है. हालांकि इससे पहले इस अविष्कार का लैब में Demonstration हो चुका है.

डिवाइस पर विभिन्न अस्पतालों में हुए टेस्ट
इस डिवाइस के जरिए निर्धारित समय तक कैंसर की जांच रिपोर्टों और प्रक्रिया को परखा गया है. वहीं विभिन्न अस्पतालों में डाक्टरों द्वारा ट्रायल टेस्ट किए गए हैं, जिसमें यह डिवाइस तमाम प्रति मानव में सफल पायी गई है. अब जबकि यह डिवाइस बड़े पैमाने पर शिविरों के जरिए संभावित मरीजों की प्राथमिक जांच के लिए उपयुक्त पाया गया है, तो इंदौर एयरपोर्ट से इसके जरिए ओरल कैंसर जांच शिविर की शुरुआत भी हो चुकी है

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इंदौर एयरपोर्ट पर लगा पहला जांच शिविर
देश में अपनी तरह के इस कैंसर डिटेक्शन डिवाइस का सार्वजनिक रूप से पहली बार प्रयोग एयरपोर्ट डायरेक्टर आर्यमा सान्याल की पहल पर इंदौर एयरपोर्ट पर सोमवार को हुआ. इस शिविर के दौरान आरआर कैट के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा चिकित्सा विशेषज्ञ और कैंसर के विभिन्न डॉक्टरों ने हिस्सा लिया. एयरपोर्ट के तमाम अधिकारियों कर्मचारियों की जांच भी इस नई डिवाइस के जरिए की गई. हालांकि जांच के दौरान कोई भी संभावित मरीज नहीं पाया गया.

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