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200 साल पुराने हिंगोट युद्ध पर कोरोना का ब्रेक, इस बार नहीं होगा आयोजित - हिंगोट युद्ध

प्रदेश में दिवाली के अगले दिन युद्ध की सदियों पुरानी परंपरा हिंगोट युद्ध इस बार नहीं मनाया जाएगा. इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब प्रशासन ने कोरोना संक्रमण के कारण इसकी अनुमति नहीं दी है.

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हिंगोट युद्ध

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Published : Nov 15, 2020, 4:08 PM IST

इंदौर।शहर के गौतमपुरा में दिवाली के दूसरे दिन खेले जाने वाले हिंगोट युद्ध को लेकर प्रशासन ने सख्ती दिखाई है. इस साल प्रशासन ने हिंगोट युद्ध पर प्रतिबंध लगा दिया है. गौतमपुरा में हर साल की तरह आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध इस बार आयोजित नहीं किया जा सकेगा. हालांकि जनप्रतिनिधियों की मांग है कि जब चुनावी रैलियों का आयोजन किया जा सकता है तो हिंगोट युद्ध का आयोजन भी किया जाए. वहीं इस युद्ध को रोकने के लिए प्रशासन ने खास तैयारियां भी की है.

नहीं होगा हिंगोट युद्ध


कांग्रेस ने की हिंगोट युद्ध की मांग

देपालपुर के कांग्रेस विधायक विशाल पटेल ने मांग की है कि हिंगोट युद्ध आयोजित किया जाना चाहिए. क्योंकि जब चुनावी रैलियों में भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है तो हिंगोट को भी नियंत्रित कर सकते हैं. विशाल पटेल का कहना है कि यह परंपरा सालों से चली आ रही है इस कारण प्रशासन को इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए.

प्रशासन ने जारी किया आदेश
हिंगोट युद्ध को लेकर कलेक्टर ने आदेश जारी किया है कि इस साल हिंगोट युद्ध का आयोजन नहीं होगा. इसका सख्ती से पालन कराने के लिए पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया है. गौतमपुरा में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है. जिस स्थान पर हिंगोट युद्ध का आयोजन होता है. वहां पर पुलिस के द्वारा अस्थाई पुलिस चौकी भी बनाई गई है. प्रशासन ने जारी आदेश को सख्ती से पालन कराने के निर्देश भी दिए हैं.


सदियों से चली आ रही परंपरा
हिंगोट युद्ध सालों से चली आ रही एक परंपरा है. जिसमें दो दल आमने-सामने होते हैं. इन दोनों दलों में हिंगोट नाम के फल में बारूद भरकर उसे एक दूसरे के ऊपर फेंका जाता है. दिवाली के दूसरे दिन यह युद्ध होता है. जिसमें कि कई बार दर्शकों और योद्धाओं को गंभीर चोटें लगी हैं. जिसके चलते इस युद्ध पर कई बार प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन जनप्रतिनिधियों के दबाव के कारण इसे फिर से चालू करना पड़ा.

क्या होता है हिंगोट

हिंगोरिया पेड़ के फल को हिंगोट कहते हैं. यह फल नींबू के आकार से बड़ा होता है. कहा जाता है कि यह चंबल किनारे जंगलों में अधिक पाया जाता है. हिंगोट युद्ध के पहले पेड़ तोड़ कर हिंगोट को जमा कर लेते हैं. फिर हिंगोट के बारूद भर कर इसको तैयार किया जाता है. उसी से एक दूसरे पर हमला करते हैं.

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