इंदौर।मध्यप्रदेश के शासकीय अस्पतालों में इलाज की बेहतर सुविधाओं के सरकारी दावों की बीच आलम ये है कि, कोरोना महामारी में प्रदेश के मरीजों की निर्भरता सरकारी नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों पर है. यहीं वजह है कि, मार्च में संक्रमण फैलते ही मरीजों को भर्ती करने से लेकर उनके इलाज की जिम्मेदारी निजी अस्पतालों को सौंप दी गई. फिलहाल 80 फीसदी मरीजों का इलाज अब भी निजी अस्पतालों में ही सरकारी खर्चे पर किया जा रहा है.
मार्च में जब कोरोना संक्रमण फैला, तो सरकारी अस्पतालों में सामान्य मरीजों के साथ संक्रमित मरीजों को नहीं रखा जा सकता था, ऐसी स्थिति में विकल्प के तौर पर जब निजी अस्पताल संचालकों से बात हुई, तो वो शासन के खर्चे पर कोरोना मरीजों के लिए अलग वार्ड परिसर और संसाधन उपलब्ध कराने के लिए तैयार हो गए. लिहाजा शासन ने एक निर्धारित मानदेय के अनुसार निजी अस्पतालों से अनुबंध कर लिया. सामान्य तौर पर अधिकांश मरीजों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों में ही भेजा गया.
तीन कैटेगरी के अस्पतालों में हुआ अलग-अलग इलाज
कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में इंदौर जिला प्रशासन ने अस्पतालों को तीन श्रेणी में बांटा था, इसमें रेड, यलो, और ग्रीन श्रेणी के अलग-अलग अस्पताल थे. रेड कैटेगरी के अस्पताल सिर्फ कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए निर्धारित किए गए, जबकि संभावित मरीजों के लिए यलो कैटेगरी के अस्पताल निर्धारित किए गए. जिनमें करीब 12 निजी अस्पताल थे. हालांकि बाद में शहर के तीन निजी और दो सरकारी अस्पतालों को कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए निर्धारित कर दिया गया. इंदौर में एमआर टीवी हॉस्पिटल और एमडीएच कंपाउंड हॉस्पिटल में कोरोना के इलाज की शासकीय व्यवस्था है, जहां शासकीय स्तर पर मरीजों को भर्ती कर उनका इलाज किया जा रहा है. वहीं निजी मेडिकल कॉलेज के तौर पर अरविंदो, चोइथराम और इंडेक्स कॉलेज में उपचार किया जा रहा है.
अंतिम चरण में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का निर्माण