इंदौर (पीटीआई)।मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इंदौर-1 विधानसभा सीट से अपने महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव मैदान में उतारे जाने के बाद उनके प्रतिद्वन्द्वी एवं कांग्रेस के प्रत्याशी संजय शुक्ला को अपनी सीट बचाने के लिए चुनावी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है. समझा जाता है कि इस सीट पर जातीय समीकरण की अहम भूमिका होगी. वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजयवर्गीय को भाजपा ने 10 साल के लम्बे अंतराल के बाद टिकट दिया है.
कांग्रेस ने संजय शुक्ला पर जताया भरोसा: कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक संजय शुक्ला (49) पर दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण समुदाय के शुक्ला इंदौर-1 क्षेत्र के ही मूल निवासी हैं, जबकि विजयवर्गीय इंदौर-2 क्षेत्र के रहने वाले हैं. कुल 3.64 लाख मतदाताओं वाले इंदौर-1 क्षेत्र का चुनाव परिणाम तय करने में ब्राह्मण और यादव समुदायों के लोगों की भूमिका चुनाव में अहम रहती है. संजय शुक्ला वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान इंदौर के शहरी क्षेत्र की सभी पांच सीटों में कांग्रेस के इकलौते विजयी उम्मीदवार थे और शेष चारों सीटें भाजपा की झोली में चली गई थीं. हालांकि, वर्ष 2022 के पिछले नगर निगम चुनावों में शुक्ला को महापौर पद पर भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
संजय शुक्ला ने बदली रणनीति: अब विधानसभा चुनाव में शुक्ला का मुकाबला भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय से है. अपनी रणनीति बदलते हुए शुक्ला अब जातीय समीकरणों को साधने, चुनाव प्रचार के लिए दिग्गज नेताओं को अपने क्षेत्र में लाने और खुद के स्थानीय होने पर विशेष जोर देते हुए विजयवर्गीय को ‘मेहमान’ बता रहे हैं. अनुभवी विजयवर्गीय के अचानक मैदान में उतरने के कारण शुक्ला को इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी है.
विजयवर्गीय से बढ़ाई नजदीकियां: शुक्ला के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि जातीय समीकरण साधने के लिए कांग्रेस नये सिरे से योजना बना रही है. इसके साथ ही, विपक्ष के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सिलसिलेवार सभाओं की तैयारी भी की जा रही है. चुनाव प्रचार में स्वयं को स्थानीय उम्मीदवार और विजयवर्गीय को "मेहमान" बता रहे शुक्ला अपने लिए ‘‘नेता नहीं, बल्कि बेटा’’ का जुमला इस्तेमाल कर रहे हैं. उधर, विजयवर्गीय अपने मुख्य चुनावी प्रतिद्वंद्वी की इस चाल की काट के तौर पर मतदाताओं के सामने खुद को समूचे इंदौर के नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में हैं.