इंदौर । पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के लिए पुरानी परंपराओं को चुनौती देना बड़े साहस का काम है. अंतिम संस्कार पर कई सदियों से पुरुषों का अधिकार माना जाता रहा है. इंदौर की महिला ने इस परंपरा को तोड़ने का साहस दिखाया है. वे कई सालों से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रही हैं.
भाग्यश्री ने ठाना, अंतिम सफर हो सुहाना
मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है. इसे कोई टाल नहीं सकता. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में ये अंतिम संस्कार होता है. हिंदू धर्म में सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हर इंसान का अधिकार है. लेकिन कुछ अभागे लोगों के जीवन का ये आखिरी सफर सम्मान के साथ नहीं हो पाता. ऐसे लोगों के लिए मुक्ति का जरिया बनकर आई हैं इंदौर की भाग्यश्री. शहर की किसी गली, मोहल्ले में जब कोई शव लावारिस पड़ा मिलता है, तो लोग भाग्यश्री को याद करते हैं. क्योंकि सड़ी गली लाश को हाथ लगाने की हिम्मत कोई और नहीं कर पाता.
क्या पता आने वाला पल आखिरी पल हो
इंदौर में कई दशकों तक लावारिस बुजुर्गों की देखभाल और अंतिम संस्कार का जिम्मा समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन ने उठा रखा था. उन्हें शहर में फादर टेरेसा कहा जाता था. बीते कई सालों से भाग्यश्री भी अमरजीत सिंह के साथ काम कर रही थीं. हाल ही में कोरोना के कारण अमरजीत सिंह सूदन की मौत हो गई थी. तब से उनके काम को भाग्यश्री आगे बढ़ा रही हैं. भाग्यश्री इस कड़वी सच्चाई को जानती हैं, कि इंसान के जीवन का अगला पल उसका आखिरी क्षण भी हो सकता है. इसलिए अभिमान किस बात का.
डर के आगे जीत है
जितनी आसानी से भाग्यश्री अपने कर्तव्यों के बारे में बताती हैं, उन्हें निभाना इतना आसान कभी नहीं रहा. हिंदू समाज में परंपरागत रूप से अंतिम संस्कार से बेटियों को दूर रखा जाता है. इस समाज ने भी भाग्यश्री को चुनौती दी. लेकिन इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानने वाली भाग्यश्री ना रुकीं, ना झुंकीं. कुछ बातें उन्हें जरूर परेशान करती हैं. बिना अपनी कमजोरी को छिपाए वो कहती हैं, कई बार मनोरोगियों के शवों का अंतिम संस्कार भी करना पड़ता है. जिससे उन्हें डर लगता है.