इंदौर।देश की करीब 70 फीसदी आबादी के मांसाहारी होने के बावजूद भारतीय नागरिक प्रोटीन के कुपोषण से जूझ रहे हैं. यही वजह है कि अब खानपान के जरिए प्रोटीन की पूर्ति के लिए दुनिया भर के सोयाबीन एक्सपर्ट अब तरह-तरह के उत्पाद तैयार कर रहे हैं. इतना ही नहीं भारतीय खानपान में सोयाबीन की मात्रा बढ़ाने के लिए इंदौर में सोया फूड कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई, जिसमें देश-विदेश के सोया वैज्ञानिकों और उत्पाद विशेषज्ञों ने भाग लिया.
सोयाबीन मांसाहार से कई गुना सस्ता: दरअसल, हाल ही में देश के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह पता चला था कि देश की करीब 70 फीसदी आबादी मांसाहारी है. इसके बावजूद इतनी ही आबादी प्रोटीन की कमी से भी जूझ रही है, जिसके कारण लोगों को कमजोरी समेत मांसपेशियों से जुड़ी तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हैं. इस स्थिति के मद्देनजर भारत सरकार ने भी इसके लिए जन जागरूकता अभियान की जरूरत बताई थी. देश में मांसाहारी समेत प्रोटीन के अन्य विकल्पों के अलावा सिर्फ सोयाबीन ही ऐसा उत्पाद है, जिसमें अन्य विकल्पों की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा प्रोटीन है. इसके अलावा यह मांसाहार से भी कई गुना सस्ता है.
मिड डे मील में सोयाबीन सप्लीमेंट:देशभर में अब प्रोटीन की पूर्ति के लिए सोयाबीन को विकल्प माना जा रहा है. भारत में ही सोयाबीन पर जारी रिसर्च के जरिए कोशिश की जा रही है कि सोयाबीन को प्रोसेस करके उसका अधिकतम उपयोग खानपान में कैसे किया जाए. वहीं सोयाबीन उत्पादों को तरह-तरह के फ्लेवर और व्यंजनों के रूप में तैयार करने की विधि प्लानिंग की जा रही है. इधर, आहार विशेषज्ञों का भी मानना यही है कि भारत में कुपोषण से मुक्ति सोयाबीन उत्पादों के जरिए ही मिल सकती है. इसके अलावा कम उम्र के जिन बच्चों में प्रोटीन की कमी है, उन्हें भी मिड डे मील के जरिए सोयाबीन सप्लीमेंट दिया जाता है. उन्हें कुपोषण से बचाया जा सकता है. हालांकि देश में फिलहाल सोयाबीन के खानपान को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी जुड़ी हुई है. तमाम तरह के रिसर्च और खाद्य आधारित जांच के बावजूद यह स्पष्ट हो गया है कि सोयाबीन में मानव शरीर के लिए हानिकारक तत्व नहीं हैं, जितने बताए जाते हैं वह सोयाबीन पकाने के बाद पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं.