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Water Harvesting: बिना सरकारी मदद के ग्रामीण सहेज रहे भविष्य के लिए पानी, पर्यावरण बचाव के लिए चला रहे अभियान

नर्मदापुरम का काकड़ी गांव जोकि घने जंगल से विस्थापित हुआ था, अब मिसाल बना हुआ है. जहां आदिवासियों ने बिना सरकारी मदद के पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है. ग्रामीण बिना किसी मदद के पर्यावरण बचाव के लिए अनोखी मुहिम चला रहे हैं. जिसमें भविष्य के लिए पानी सहेजना और पर्यावरण बचाव के विभिन्न तरीकों को अपनाया जा रहा है.

Villagers displaced when tiger population increased in forest
जंगल में बाघों का कुनबा बढ़ा तो विस्थापित हुए ग्रामीण

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Published : May 30, 2022, 5:04 PM IST

नर्मदापुरम। बाघों का कुनबा बढ़ाने के लिए ग्रामीण पहले घने जंगल से विस्थापित हुए. अब पर्यावरण को बचाने के लिए बारिश का पानी तो सहेज ही रहे हैं, तो वहीं स्वच्छता के लिए अभियान चला रहे. यह शहरी गाँव के लोग नहीं बल्कि विस्थापितों का काकड़ी गांव है. यहाँ अधिकांश आदिवासी परिवार हैं, जो दूसरों के लिए मिसाल बने हुए हैं. सरकार को जहां शहरी क्षेत्रों में जनता को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए कई कदम उठाने पड़ रहे, साथ ही करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. वहीं दूसरी ओर नर्मदापुरम का काकड़ी गांव विस्थापित हैं. जो खुद के बलबूते गांव में पर्यावरण के लिए परिवर्तन ला रहे हैं.

बिना सरकारी मदद के ग्रामीण सहेज रहे पानी

गांव में गंदगी करने पर जुर्माना: सोहागपुर तहसील के अंतर्गत 2013 में बोरी अभ्यारण से काकड़ी को विस्थापित किया गया था. 34 परिवार और कुल 200 लोगों की आबादी वाले इस गांव के लोगों ने मिलकर वाटर हार्वेस्टिंग, स्वच्छता को लेकर अभियान चलाया हुआ है. जिसमें गांव के एक शिक्षक ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी. गांव में किसी प्रकार का भी कचरा फैलाने से लेकर ध्वनि प्रदूषण पर भी रोक लगा कर रखी हुई है. गांव के लोग मिलकर महीने की 2 तारीख को स्वच्छता रैली निकालकर सफाई का अभियान छेड़ते हैं. गांव या किसी बाहर के लोगों द्वारा गांव में गंदगी फैलाने पर 11 रुपए का जुर्माना भी लगाया जाता.

काकड़ी गांव के लोग पर्यावरण बचाव के लिए चला रहे अभियान

ग्रामीणों ने मिलकर किया वाटर हार्वेस्टिंग का काम: पारंपरिक वेशभूषा पहनकर गांव के पुरुष पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रदर्शन भी शादी विवाह सहित अन्य कार्यक्रमों में करते हैं. गांव के एक शिक्षक अर्जुन नररे ने बताया कि 2013 में गांव स्थापित हुआ था और विस्थापित होने के बाद सोहागपुर में बसाया गया. साफ-सफाई को लेकर गांव के सभी लोगों ने हर माह की 2 तारीख को स्वच्छता अभियान चलाने का निर्णय लिया था, जिससे गांव में साफ सफाई रहती है. गंदगी फैलाने वालों के ऊपर ग्रामीणों ने मिलकर 11 का जुर्माना भी लगाने की बात कही है. लेकिन 2013 के बाद से आज तक कभी भी जुर्माना लगाने की जरूरत हमें नहीं लगी. ग्रामीण इतने जागरूक हैं कि, आज तक किसी ने गंदगी नहीं फैलाई. साथ ही ग्रामीणों ने मिलकर वाटर हार्वेस्टिंग का भी काम किया. स्वयं के खर्चे से गांव के 34 परिवारों ने मिलकर हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाए, ताकि जल की आने वाली समस्या एवं जल स्तर को बचाया जा सके.

ध्वनि नियंत्रण को लेकर कड़े नियम

ध्वनि नियंत्रण के लिए पटाखों पर रोक: ग्रामीणों ने मिलकर ध्वनि प्रदूषण के लिए वाद्य यंत्रों एवं पटाखों पर भी रोक लगा कर रखी है. गांव में यदि शादी विवाह हो तो, ग्रामीणों द्वारा पारंपरिक नृत्य एवं पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है. गांव के शिवलाल बताते हैं कि वाद्य यंत्र एवं शादी विवाह में इन्हीं का उपयोग करते हैं. डीजे, पटाखे जैसे ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों एवं प्रदूषण पर रोक लगा कर रखी है.

गांव में गंदगी करने पर ग्यारह रुपये जुर्माना

मिसाल बना गांव: सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के सह संचालक संदीप फैलोश ने बताया कि सन 2013 में बोरी रेंज से विस्थापित किए हुए इस गांव को विस्थापित किया गया था. जो आज यह एक मिसाल बना हुआ है, यहां पर वाटर हार्वेस्टिंग, स्वच्छता अभियान और कई ऐसी चीजें ग्रामीणों ने की हैं जो मॉडल के रूप में गांव प्रस्तुत हुआ है. दूसरे गांव के लोग भी इस गांव को देखकर बदलना चाहते हैं. पुराने समय से बोरी अभ्यारण में यह रहे हैं, ध्वनि प्रदूषण जैसी चीज जंगलों में देखी नहीं. जो यहां देखा ग्रामीणों ने आतिशबाजी जैसी चीजों पर ध्वनि प्रदूषण पर भी बैन लगा दिया है. ग्रामीणों ने प्रेरित होकर उनकी सूझबूझ से वाटर हार्वेस्टिंग का काम किया है. आज के समय में हर गांव हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग है और पानी बचाने के लिए मुहिम शुरु की है.

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