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सागर के संघर्ष की कहानी: टूटी हॉकी से प्रैक्टिस कर भारत को दिलाया कांस्य पदक - story of struggle of sagar

Tokyo Olympics 2020 में भारत ने 41 साल बाद कांस्य पदक को जीतकर इतिहास रच दिया. इस इतिहास को रचने में होशंगाबाद के विवेक सागर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अर्जेंटीना के साथ हुए क्वार्टर फाइनल मुकाबले में विवेक ने गोल दागकर भारत को सेमिफाइनल तक पहुंचाया था. विवेक की ओलंपिक तक पहुंचने की राह आसान नहीं थी. 7 साल की उम्र से विवेक ने टूटी हॉकी से खेलना तो शुरू कर दिया, लेकिन प्रैक्टिस के दौरान उनके कंधे की हड्डी टूट गई थी. जिसके बाद वे जूनियर वर्ल्ड कप से बाहर हो गए. विवेक ने इसके बाद भी हार नहीं मानी और आज देश के लिए पदक जीत लिया.

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सागर के संघर्ष की कहानी

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Published : Aug 5, 2021, 10:48 PM IST

होशंगाबाद। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने गुरुवार को Tokyo Olympics 2020 में शानदार खेल का प्रदर्शन कर 41 साल बाद कांस्य पदक अपने नाम किया. भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने जादुई खेल दिखाकर 5-4 से चार बार की चैम्पियन जर्मनी की टीम को शिकस्त दी. भारतीय टीम की इस उपलब्धि से पूरा देश सहित होशंगाबाद में खास जश्न का माहौल है. होशंगाबाद के बेटे विवेक सागर के गृह ग्राम चांदोन में गुरुवार सुबह से ही पदक जीतने की उम्मीद से गांव वाले विवेक के घर पर मैच देखने इक्ट्ठा हो गए. जीत के बाद दिनभर पूरे ग्रामीणों ने जश्न मनाया.

ओलंपिक के महत्वपूर्ण मैच में अर्जेंटीना को अहम मुकाबले में भारत ने अर्जेंटीना पर 3-1 से जीत दर्ज की थी. जिसमें विवेक सागर की अहम भूमिका रही थी. इस मैच में मिडफील्डर रहे विवेक ने एक गोल दागकर भारत को क्वार्टर फाइनल में पहुंचाने का महत्वपूर्ण योगदान दिया था. जिसके बाद गुरुवार को जर्मनी को हराकर टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने में भी विवेक ने अहम भूमिका निभाई.

विवेक का ओलंपिक तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था. हॉकी की प्रैक्टिस के दौरान विवेक की कंधे की हड्डी टूट गई थी. जिसके कारण विवेक को जूनियर वर्ल्ड कप में खेलने का मौका नहीं मिला. इतना ही नहीं हड्डी के इलाज के दौरान विवेक की आंत में छेद हो गया था. डॉक्टरों ने विवेक की उम्मीद छोड़ दी थी. इतना कुछ हो जाने के बाद भी विवेक ने हार नहीं मानी. लगभग एक माह तक अस्पताल में रहने के बाद विवेक ने वापसी करते हुए फिर से इंडिया टीम में जगह बनाई और आज देश को मेडल दिलाने में महत्वपुर्ण भूमिका निभाई. जानिए विवेक की ओलंपिक में तक पहुंचने की कहानी...

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12 वर्ष में पता चली विवेक की प्रतिभा

विवेक के पिता रोहित सागर प्रसाद ने बताया कि विवेक की प्रतिभा करीब 10-12 साल में पता चली. एक टूर्नामेंट में उसका खेल काबिले तारीफ रहा, जिसकी खूब चर्चा हुई थी. इससे पहले विवेक के खेल के बारे में कभी ध्यान नहीं दिया. क्योंकि विवेक प्रैक्टिस में आता जाता रहता था, हमें लगता था कि खेल रहा है खेलने दो. विवेक ने 7 साल की उम्र में ही लोकल ग्राउंड में खेलना शुरू किया. वहीं ग्रामीण क्षेत्र में खेल की समस्या को लेकर पिता ने बताया कि गांव देहात के बच्चे फैक्ट्री के ग्राउंड में खेलते हैं.

जब जूनियर वर्ल्ड कप में जाने का सपना टूटा

विवेक जब पहल इंडिया कैंप सेलेक्ट होकर आया था, तो प्रैक्टिस करते समय उसकी कॉलर बोन टूट गई थी. कॉलर बोन टूटने के कारण जूनियर वर्ल्ड कप में खेलने का उसका सपना टूट गया. इस दौरान दवा की अधिकता से विवेक के पेट की आंतों में छेद हो गया. जिससे उसका पूरा खाना पेट में निकलकर आने लगा था, जिसके कारण पेट में बहुत दर्द बना रहने लगा. एकेडमी से संबंधित डॉक्टर ने हमें बताया कि विवेक की कंडीशन बहुत खराब है. हो सकता है ऑपरेशन करना पड़े.

19 दिनों तक ग्लूकोस और दवाओं पर जिंदा था विवेक

डॉक्टर ने बताया पहले दवाएं देकर देखते है, हो सका तो उससे ठीक हो जाए. 18 से 19 दिनों तक विवेक बिना खाना खाए रहा. उसे सिर्फ ग्लूकोस और दवाओं पर जिंदा रखा गया था. वह सिर्फ बेड पर ही लेटा रहता था. अशोक ध्यानचंद सर सुबह शाम उससे मिलने आते थे. विवेक की पॉजिटिव एनर्जी से ही वह रिकवर हुआ और उसने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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टूटी हॉकी से प्रैक्टिस करता था विवेक

यह सब होने के 3 से 4 माह बाद ही विवेक इंडिया टीम कैंपर में सेलेक्ट हुआ. विवेक के टैलेंट के कारण ही वह दूसरी बार इंडियन टीम कैंप में सिलेक्ट हुआ और कैप्टन के रूप में जूनियर खेला. विवेक ने टूटी फूटी हॉकी से ही खेल की शुरुआत की. हॉकी का ग्राउंड भी उबड़ खाबड़ रहता था. यहां के लोगों ने उसके लिए ग्राउंड बना दिया. परिवार की स्थिति आर्थिक रूप से ठीक नहीं थी. विवेक ने जूते भी सीनियर खिलाड़ियों से उधार लेकर पहने थे. विवेक बड़े जूते कपड़ा फंसाकर पहनता था.

बचपन से खेल में ही लगा था दिमाग

विवेक की मां कहती हैं कि भारतीय हॉकी टीम के कांस्य पदक जीतने पर सभी बहुत खुश हैं. हमें इस बात की खुशी है कि, गोल्ड नहीं आया तो क्या हुआ कम से कम कांस्य पदक तो रहा. मां ने बताया कि बचपन से ही विवेक का दिमाग खेल में लगा रहता था. खेलने जाने के लिए मुझसे बोलकर पापा को मनाने के लिए कहता था. विवेक के पापा चाहते थे कि विवेक पढ़ लिख कर इंजीनियर बनेगा. लेकिन विवेक का मन था कि वह पढ़ाई भी करें और खेल भी खेले. विवेक खेलने जाता था पर उसके पास पैसा नहीं रहता था. किराए तक के पैसे नहीं रहते थे तो वह मुझसे ही मांगता था.

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कई उपलब्धियां अपने नाम कर चुका हैं विवेक

जिले की इटारसी तहसील के ग्राम शिवनगर चांदौन में मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे शिक्षक रोहित प्रसाद के बेटे विवेक सागर ने वर्ष 2018 में फोर नेशन टूर्नामेंट, कॉमनवेल्थ गेम्स, चैम्पियन ट्रॉफी, यूथ ओलंपिक, न्यूजीलैंड टेस्ट सीरीज, एशियन गेम्स, वर्ष 2019 में अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट, आस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज और फाइनल सीरीज भुवनेश्वर जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया.

विवेक सागर को यूथ ओलंपिक में बेस्ट स्कोरर और फाइनल सीरीज भुवनेश्वर में बेस्ट जूनियर प्लेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था. एशियाड 2018 में भारत को कांस्य पदक दिलाने वाली भारतीय टीम में शामिल मिडफिल्डर हॉकी खिलाड़ी विवेक 62 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं. जिन्हे वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश शासन ने एकलव्य अवार्ड से सम्मानित किया था.

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