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आदमगढ़ की 22 गुफाओं में जीवित है आठ हजार साल पुरानी रॉक पेंटिंग - Rock panting are verge of extinction

आदमगढ़ की पहाड़ियों पर आठ हजार साल पहले के आदिमानव की सभ्यता के निशान के रूप में बड़ी संख्या में पुरापाषाकालीन शैलचित्र (रॉक पेंटिंग) मौजूद हैं. यहां बड़ी-बड़ी करीब 80 गुफा मौजूद हैं. जिसमे करीब 22 गुफा में शैलचित्र बने हुए हैं. जो सभ्यता सहित प्राकतिक रंगों से बने इतिहास को दिखाते हैं. लेकिन संरक्षण के अभाव में विलुप्त होने के कगार पर है. पढ़िए पूरी खबर...

Rock painting on the verge of extinction
रॉक पेंटिंग

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Published : Oct 14, 2020, 9:27 AM IST

Updated : Oct 14, 2020, 12:41 PM IST

होशंगाबाद। हम आज विज्ञान के सहारे प्रगति के ऐसे दौर में हैं. जहां हमारे पास हर सुख सुविधा मौजूद है और विज्ञान ने हमारा जीवन सुखदायी बना दिया है. आज हम चांद और मंगल ग्रह से लेकर अंतरिक्ष तक की यात्रा बिना किसी संदेह के आसानी से कर लेते हैं, लेकिन हजारों-लाखों साल पहले एक समय ऐसा भी था जब हमारे पूर्वज यानि (आदिमानव) मानव सभ्यता के विकास के दौर से गुजर रहे थे. जहां हर काम कठिन था. आदिमानव के दौर की कुछ निशानियां आज भी मौजूद है. लेकिन इन निशानियों की देखरेख न होन की वजह से वे विलुप्त होने की कगार पर हैं.

रॉक पेंटिंग विलुप्त होने की कगार पर

8 हजार साल पुराने शैलचित्र, 22 गुफाओं में हैं मौजूद

होशंगाबाद जिले में आदमगढ़ की पहाड़ियों पर आठ हजार साल पहले के आदिमानव की सभ्यता के निशान के रूप में बड़ी संख्या में पुरापाषाकालीन शैलचित्र (रॉक पेंटिंग) मौजूद हैं. यहां बड़ी-बड़ी करीब 80 गुफा मौजूद हैं. जिसमे करीब 22 गुफा में शैलचित्र बने हुए हैं. जो सभ्यता सहित प्राकतिक रंगों से बने इतिहास को दिखाते हैं. यहां बिखरीं पड़ीं धरोहरें इतिहास के कालखंडों के रहस्यों को अपने गर्भ में छिपाए हैं. ये शैलचित्र यहां की प्राचीन शैली के गवाह हैं, पर संरक्षण के अभाव में विलुप्त होने के कगार पर है.

कुछ सालों मे मिटने की कगार पर शैलचित्र

शैलचित्रों का इतिहास ऐतिहासिक काल का रहा है. जिस दौरान आदिमानव काल की जीवन शैली युद्ध सहित शिकार करने की पद्धति शैलचित्र के माध्यम से बताई गई हैं. 8 हजार साल पुराने ये शैलचित्र अब पिछले दो दशकों में समय के साथ मिटते जा रहे हैं. जिसमें कई शैलचित्र मिट भी चुके हैं. साथ ही कुछ लगातार धूमिल हो चुके हैं.

22 गुफा में मौजूद है शैलचित्र

लागतार बारिश और लाइकेन पहुंचा रहे नुकसान

इन शैलचित्रों को प्रोफेसर रवि उपाध्याय के मुताबिक लगातार बारिश की टपकती बूंदों के बाद शैवाल और कवक मिलकर बनकर बनने वाले लाइकेन से इन शैलचित्रों को अधिक नुकसान हो रहा है, जो की शैलचित्रों के ऊपर परत बना लेती है. अगर शैल चित्रों के संरक्षण के लिए समय रहते कोई कदम नहीं उठाए गए तो इन्हें हमारी आने वाली पीढ़ियां नहीं देख पाएंगी.

संरक्षण नहीं किया तो मिट जाएंगे शैलचित्र

इतने बड़े भूभाग में केवल सुरक्षा के लिए चार गार्डों को ही तैनात किया गया है. जो समय-समय पर पर्यटक को रोक नहीं पाते हैं जिसके चलते लगातार रॉक पेंटिंग पर लोग इन्हें नुकसान पहुंचाते रहते हैं. हाल ही में 20 सालों में ही पुरातत्व विभाग में इस क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है. इसके लिए विभाग अब पर्यकटों को रोकना शुरू किया गया है.

रॉक पेंटिंग

शैलचित्र बचाने का ये प्रयास क्या काफी ?

पुरातत्व विभाग के मल्टी टास्किंग स्टाफ की पद पर पदस्थ श्रवण कुमार का कहना है कि पहले पर्यटक रॉक पेंटिंग पर पानी डालकर हाथ लगाकर देखते थे जिनको अब सख्ती से रोक लगा दी गई.साथ ही प्राकृतिक रूप से नमी और सूरज की रोशनी के लिए सघन वृक्षारोपण करवाया है.

8 हजार साल पुरानी बनी रॉक पेंटिंग

रॉक पेंटिंग के पास तार फेंसिंग की योजना

श्रवण कुमार का कहना है कि हाल ही में रॉक पेंटिंग्स के पास तार फेंसिंग करने की योजना बनाई गई है जिसे जल्दी तार फेंसिंग कर दी जाएगी जिससे पर्यटक इन शैल चित्रों को छू नही सकेगे .यह शैलचित्र सांस्कृतिक धरोहर हैं जो मानव इतिहास को दिखाती हैं किस तरह मानव इतिहास समय के साथ प्रगति करता आया है.

Last Updated : Oct 14, 2020, 12:41 PM IST

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