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Subhash Chandra Bose ये कैसा आजादी का अमृत महोत्सव, नेताजी सुभाष चंद्र बोस को इटारसी लाने वाली एंबुलेंस कबाड़ में तब्दील

तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस को इटारसी लाने वाली एंबुलेंस उनकी यादें ताजा करती है. लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते एंबुलेंस कबाड़ में तब्दील हो चुकी है. Independence Day 2022, Azadi ka Amrit Mahotsav, Ambulance carried Subhash Chandra Bose

Ambulance carried Subhash Chandra Bose
एंबुलेंस से नेताजी सुभाष चंद्र बोस इटारसी आए थे

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Published : Aug 14, 2022, 1:27 PM IST

नर्मदापुरम। नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) जबलपुर से इटारसी एंबुलेंस से आए थे. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इटारसी के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सरकारी अस्पताल (Dr. Syama Prasad Mukherjee Hospital) में खड़ी यह एंबुलेंस अब कबाड़ हो चुकी है. एंबुलेंस का अधिकतर हिस्सा जमीन में धंस चुका है. इसके एक हिस्से में ईंट-पत्थर भरे पड़े हैं. यह एंबुलेंस आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद दिलाती है. (Netaji came to Itarsi by Ambulance)

एंबुलेंस से नेताजी सुभाष चंद्र बोस इटारसी आए थे

एंबुलेंस से इटारसी आए थे नेताजी: बात देश की आजादी के पहले की है. 29 जनवरी 1939 को जबलपुर में कांग्रेस का 5 वां अधिवेशन था. इस अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष तय किया जाना था. इसमें शामिल होने के लिए सुभाषचंद्र बोस जबलपुर जा रहे थे. इसी दौरान इटारसी पहुंचने से पहले उनकी तबीयत खराब हो गई. सूचना मिलते ही ड्राइवर प्यारेलाल इस एंबुलेंस को चलाकर नेताजी के पास पहुंचे. प्यारेलाल इसी एंबुलेंस से उन्हें इटारसी लेकर आए.यहां इलाज के बाद नेताजी ठीक हुए और फिर इसी एंबुलेंस से वे इटारसी से जबलपुर भी गए थे. इतनी अमूल्य धरोहर आज भी रखरखाव के अभाव में कबाड़ हो चुकी है.

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प्रशासनिक उपेक्षा के चलते कबाड़ हुई एंबुलेंस: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. घर-घर तिरंगा फहराया जा रहा है. तिरंगा रैलियां निकाली जा रही हैं. लेकिन तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस को इटारसी से जबलपुर ले जाने वाली एंबुलेंस आज भी प्रशासनिक उपेक्षा के चलते इटारसी के सरकारी अस्पताल परिसर में खड़ी कबाड़ में तब्दील हो गई. आजादी की लड़ाई के बारे में जानने वाले लोग इस एंबुलेंस को अमूल्य धरोहर मानते हैं. वे अब भी मानते हैं कि इसे संरक्षित किया जाए तो आने वाली पीढ़ी को नेताजी के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा मिल सकती है.
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