होशंगाबाद। बाबा भोलेनाथ का कैलाश पर्वत के बाद दूसरा घर पचमढ़ी माना जाता है. जहां भगवान ने राक्षस भस्मासुर से बचने के लिए कई सालों तक सतपुड़ा की पहाड़ियों में वास किया था. जिसका वर्णन शिव पुराण, नर्मदा पुराण समेत कई ग्रंथों में मिलता है. शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर भस्मासुर से बचने के लिए विंध्याचल पर्वत श्रेणी के तिलक सिंदूर से पचमढ़ी पहुंचे थे और उन्होंने सैकड़ों साल गुफाओं में विश्राम किया था.
सतपुड़ा की पहाड़ियों में भगवान शंकर ने नौ साल तक की थी तपस्या, ये थी वजह
भगवान ने राक्षस भस्मासुर से बचने के लिए कई सालों तक सतपुड़ा की पहाड़ियों में वास किया था. जिसका वर्णन शिव पुराण, नर्मदा पुराण समेत कई ग्रंथों में मिलता है.
पचमढ़ी से 10 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीचोबीच बसा महादेव मंदिर जिसमें 60 मीटर अंदर गुफा में भगवान शिव ने कई सालों तक विश्राम किया था. जहां पर प्राकृतिक रूप से भगवान शिव का शिवलिंग मौजूद है. वहीं कुछ दूरी पर कुंड मौजूद है जिसे भस्मासुर कुंड कहा जाता है. कई सालों तक शंकर जी के गुफा में विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु ने उनको इस समस्या से निदान कराने के लिए मोहिनी अप्सरा का रूप धारण कर भस्मासुर से शिव की तरह तांडव कराने की इच्छा जाहिर की थी. इसी नृत्य में भस्मासुर भस्म में हो गया था. आज भी यहां भस्मासुर कुंड मौजूद है, जिसमें पहाड़ों से रिश्ता हुआ पानी पहुंचता है.
सावन का सोमवार होने के चलते भारी संख्या में शिव भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. यहां सालों से आदिवासी पूजन के लिए आते रहे हैं और आज भी सावन के सोमवार पर सैकड़ों की संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचे हैं.