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हिन्दी दिवस विशेषः अपनी पहचान को तरस रही हिन्दी को सम्मान दिलाने वाले विद्वानों की विरासत

हिन्दुस्तान में हिन्दी के संरक्षण की बात तो हर साल की जाती है, पर हिन्दी को पहचान दिलाने वाले विद्वानों की विरासत अपनी पहचान खोती जा रही है क्योंकि सरकार इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है.

विद्वानों की विरासत को पहचान की तलाश

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Published : Sep 14, 2019, 12:05 AM IST

होशंगाबाद। जिले के बाबई का वह स्कूल जहां हिन्दी के महान कवि, लेखक, पत्रकार और महान स्वतंत्रता संग्रमा सेनानी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की. अब वह जर्जर हो चुका है. पुष्प की अभिलाषा जैसी महान कविता लिखकर हिन्दी का गौरव बढ़ाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी ने इसी स्कूल में 'अ' से अनार सीखा था.

विद्वानों की विरासत को पहचान की तलाश

पूरी दुनिया 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाती है. हिन्दी के संरक्षण की बात की जा रही है, पर हिन्दी को देश-विदेश में सम्मान दिलाने वाले कवि, लेखकों की विरासत नहीं संभाल पा रहे हैं. आजादी के बाद से अब तक कई सरकारें आईं, इस स्कूल-घर को संरक्षित करने की घोषणा भी कई बार की गई, लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात जैसी है.

लंबे इंतजार के बाद परिजनों ने घर का निर्माण करा दिया, लेकिन स्कूल आज भी उसी जर्जर हालत में मौजूद है, जो कभी भी धराशाई हो सकता है. दादा माखनलाल के पिता यहां शिक्षक थे और माखनलाल ने यहीं से करीब सात साल तक बुनियादी शिक्षा प्राप्त की थी.

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