होशंगाबाद।कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन ने मजदूरों की कमर तोड़ दी. इस बीच उनके सामने एक-एक दाने की त्राही मच गई. वहीं आर्थिक तंगी से परेशान होकर अपने घर लौटे प्रवासी मजदूरों समेत बेरोजगार युवाओं को सरकार रोजगार देने का दावा कर रही है. इस दावे के लिए उनके पास सिर्फ मनरेगा जैसी कुछ और योजनाएं हैं. कोई बड़ी प्लानिंग नहीं है, ऐसे में कभी एशिया का सबसे बड़ा सोयाबीन प्लांट कहा जाने वाला प्लांट एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है, लेकिन वो तो इन दिनों धूल फांक रहा है और वहां की मशीनें जंग.
लॉकडाउन के चलते लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर पलायन के लिए मजबूर हुए. जिसके बाद अब इनके सामने रोजगार के लिए लड़ना बहुत बड़े संकट के रूप में खड़ा हुआ है. ऐसे में बेरोजगार मजदूर सरकार की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं. वहीं सरकार भी रोजगार के नए साधनों की लगातार तलाश में जुटी हुई है. जानकारी के मुताबिक जिले में अब तक दो हजार 556 प्रवासी बेरोजगार दूसरे जिलों से अपने घर तक पहुंचे हैं. इनके लिए जिले की सिवनी मालवा तहसील में एशिया का सबसे बड़ा प्लांट एक सहारे के तौर पर सामने आ सकता है, जिससे इन मजदूरों को अपने घरों के पास ही रोजगार मिल सकता है. लेकिन पिछले कई सालों से सरकार की नाकामियों के चलते प्लांट धूल फांक रहा है.
गोदाम में तब्दील हो गया प्लांट
सोया प्लांट बंद होने के बाद परिसर के कई हिस्सों को गोदाम में तब्दील कर दिया गया है. इन गोदामों में पिछले कई सालों से अनाज का भंडारण किया जा रहा है, जिससे तिलहन संघ को चार करोड़ रूपए की सालाना आमदनी होती है. इसी रकम से वहां पदस्थ कर्मचारियों को वेतन उपलब्ध हो जाता है. जब सोया प्लांट संचालित होता था तो युवा, व्यापारी और किसान सब खुश थे. लेकिन अब प्लांट बंद होने के चलते युवाओं को रोजगार के लिए कई दूसरे शहरों की ओर रूख करना पड़ रहा है. व्यापारी केवल मंडी पर आश्रित हैं. वहीं किसान सोयाबीन की फसल का सही दाम नहीं मिलने के चलते अब धान-मक्का समेत कई दूसरी फसलों की पैदावार करने में लगा है.
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बंद पड़े प्लांट से सरकार को हो रही 35 लाख रुपए महीने की आय
हालांकि प्लांट की क्षमता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बंद पड़े इस सोयाबीन प्लांट से ही लगभग 35 लाख रूपए महीने की आय सरकार को हो रही है.