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होशंगाबाद का किसान फसल अवशेष से बना रहा साईलेज, जानिए कैसे तैयार की ये गजब की मशीन

मध्यप्रदेश में नरवाई-पराली जलाने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. ऐसे में अधिकारी सहित सरकार इस पर रोक लगाने के तमाम कोशिश कर रही है. लेकिन अब तक समाधान नहीं निकाल पाई है. किसानों द्वारा गांव में खरीफ की फसल कटने के बाद बचे अवशेषों को जलाया जा रहा है. ऐसे में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के एक किसान ने इसके सामाधान के रूप में एक मशीन तैयार की है. पढ़िए पूरी खबर

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डिजाइन फोटो

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Published : Dec 4, 2020, 3:16 PM IST

होशंगाबाद।देश की राजधानी दिल्ली सहित कई महानगर में दम घुटा देने वाली हवा की वजह बढ़ते वाहनों के साथ-साथ किसानों द्वारा जलाई जाने वाली नरवाई की आग मुख्य वजह मानी जाती है. जिसमें मुख्य रुप से दिल्ली के आसपास हरियाणा और पंजाब में नरवाई (पराली) का जलना प्रमुख माना जाता है. तो वही मध्यप्रदेश में भी नरवाई जलाने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. प्रदेश के होशंगाबाद के एक किसान शरद वर्मा ने इसके सामाधान के रूप में इनोवेटिव तैयार किया है.

फसल के अवशेष से साईलेज बनाने की विधि

होशंगाबाद के इटारसी में सनखेड़ा गांव में रहने वाले शरद वर्मा आधुनिक खेती करते हैं. अब शरद वर्मा ने फसल के बाद बचने वाले अवशेषों से जानवर के लिए चार का निर्माण किया है. इसके लिए किसान शरद ने एक आधुनिक मशीन का निर्माण कराया है. इस तरह की मध्यप्रदेश की पहली मशीन होने के दावा किसान शरद वर्मा कर रहे हैं. जिसमें इस तरह से साईलेज (पशु आहार) बनाया जा रहा है. जो कि मामूली से लागत में पशुओं के लिए उपलब्ध हो रहा है.

साईलेज बनाता किसान

पराली में आग रोकने में होगा कारगर

किसानों के लिए फसल कटने के बाद बचे अवशेष को खेत साफ करने के लिए किसान के पास आग लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. ऐसे में खेत के साथ मिट्टी की उर्वरता के अलावा वायु प्रदूषण भी होता है. लेकिन अब मशीन के माध्यम से अवशेषों को पीसकर गुदा का पानी मिलाकर 45 दिन के लिए पैकेट में पैक करके रखा जाता है, जिसे फर्टीलाइजर होने के बाद आसानी से पशुओं को खिलाया जा सकता है.

खेत का अवशेष

न्यूजीलैंड यात्रा के दौरान देखी मशीन

किसान शरद वर्मा को कृषि विभाग द्वारा आधुनिक खेती के लिए सरकारी मदद से तीन साल पहले न्यूजीलैंड यात्रा के लिए भेजा गया था. जहां पर वह खेतों में कचरे के निष्पादन को देख कर आए थे. तभी से लगातार इस तरह की मशीन की खोज में लगे हुए थे. ऐसे मे इंटरनेट की मदद से लोकल लेवल पर मशीन को बनवाया. साथ ही टेक्नोलॉजी का उपयोग कर चलित मशीन तैयार कराई गई. जिसमें आसानी से साइलेज बनाया जा सकता है. उसको आसानी से 50 किलो के बैग में तैयार कर कम जगह में भी रखा जा सकता है. वहीं इसके उलट गेहूं से बनने वाले पशुओं के चेहरे को बहुत अधिक जगह में रखना पड़ता है. लेकिन इसे आसानी से ही पैकेट में बंद कर रखा जा सकता है.

40 एकड़ में मक्के की फसल से बना रहे पशु-आहार

किसान खेत पर 40 एकड़ में मक्के की फसल के बाद उसके बचे अवशेष सहित अन्य छिलकों को मशीन में डालकर 45 दिन में साईलेज को पैक कर रहे हैं. ये साईलेज धान, बाजरा, मक्का के अवशेष का उपयोग कर बना सकते हैं. फिलहाल केवल मक्के से बनाया गया है. इसे आसपास के दूध डेरी मालिक पसंद कर रहे हैं. जिसको किसान शरद 5 रुपए किलो की कीमत पर बेच रहे हैं. जिससे आर्थिक लाभ भी कमा रहे हैं. साथ ही पशु के लिए भी लाभकारी मान रहे हैं. इस मशीन के निर्माण की लागत करीब 4 लाख रूपए बताई जा रही है. फिलहाल सरकार द्वारा इस पर सब्सिडी का प्रावधान भी नहीं किया गया है.

वहीं कृषि यंत्री अधिकारी दीपक वाधवानी बताते हैं कि फिलहाल ये ट्रायल के तौर पर उपयोग की जा रही है. यह मध्य प्रदेश की पहली मशीन है अगर इसका प्रचार प्रसार बढ़ता है तो रजिस्ट्रेशन कराकर सब्सिडी देने के लिए प्रस्ताव सरकार को भेजा जाएगा.

पराली जलाने के दौरान सात लोगों की हुई थी मौत

बता दें कि होशंगाबाद जिले में 5 अप्रैल को खेतों की नरवाई जलाने के दौरान 7 लोगों की मौत हो गई थी. उस समय आगजनी से हजारों एकड़ की फसल जलकर राख हो गई थी. जिसमें करीब 19 लोग गंभीर रूप से झुलस गए थे. जानकारी के मुताबिक नरवाई की आग में करीब 30 गांव चपेट में आ गए थे, यह आग दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक तक पहुंच गई थी जिसे बड़ी मशक्कत के बाद बुझाया गया था.

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