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होशंगाबाद: 52 तरह की नई गेहूं किस्मों का इजात, 117 साल में 6 हजार जर्मप्लाज्म किए गए स्टोर

होशंगाबाद के पवारखेड़ा अनुसंधान केंद्र में खेती की आधुनिक पद्धतियों और बीजों के निर्माण को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगातार रिसर्च कर नई-नई पद्धतियों का निर्माण किया जा रहा है. यहां 117 सालों से गेहूं बीज के 6 हजार तरह के जर्मप्लाज्म स्टोर किए गए हैं. कहा जाता है कि, ये देश का पहला रिसर्च सेंटर है. जहां की रिसर्च के डेटा विदेश भी भेजे जाते रहे हैं, ताकि बेहतर उत्पादकता हासिल की जा सके.

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Published : Oct 27, 2020, 7:03 AM IST

होशंगाबाद। मध्यप्रदेश को साल 2016-17 के लिए लगातार छठवीं बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है. इसके पीछे होशंगाबाद जिले में स्थित सवा सौ साल पुराने कृषि अनुसंधान केन्द्र का अहम योगदान रहा है. किसानों को खेती की आधुनिक पद्धतियों और बीजों के निर्माण को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगातार रिसर्च कर नई-नई पद्धतियां इजात की जाती रही हैं. यहां 117 सालों से गेहूं बीज के 6 हजार तरह के जर्मप्लाज्म स्टोर किए गए हैं. कहा जाता है कि, ये देश का पहला रिसर्च सेंटर है, जहां की रिसर्च के डेटा विदेश भी भेजे जाते रहे हैं, ताकि बेहतर उत्पादकता हासिल की जा सके.

गेहूं बीज पर रिसर्च

117 सालों से गेहूं के बीजों पर हो रहा रिसर्च

नर्मदा किनारे की मिट्टी की अच्छी उत्पादकता गेहूं के लिए वरदान है. 1903 में गेहूं बीज पर रिसर्च के लिए पवारखेड़ा में अनुसंधान केंद्र खोला गया. उस समय देश का इकलौता रिसर्च सेंटर था, जहां से रिसर्च का डेटा विदेश भी भेजा जाता था, ताकि बेहतर उत्पादकता हासिल हो सके. होशंगाबाद की मिट्टी में किसान 1 एकड़ में फिलहाल 45 से 47 क्विंटल गेहूं का उत्पादन कर सकता है. नई किस्मों को इजाद करने के लिए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ओर गेहूं के विशेषज्ञ डॉ. केके मिश्रा बताते है कि, यहां पर गेहूं के 6 हजार तरह के जर्मप्लाज्म स्टोर किए गए हैं. जिनको भविष्य में रिसर्च के लिए सुरक्षित रखा गया है.

6 हजार जर्म प्लाज्म के एक चौधाई लगाते है

खेत मेबरखेड़ा अनुसंधान केंद्र के कृषि फार्म में हर साल रवि की फसल के समय 6 हजार जर्मप्लाज्म का एक चौथाई लगाकर बीजों को सुरक्षित रखा जाता है, ताकि भविष्य में इन्हें अनुसंधान के कार्य में लिया जा सके. इस तरह हर चौथे साल में गेहूं के प्लाज्म को सुरक्षित रखा जाता है. 4 साल पहले तक 'मॉड्यूलर फॉर मीडियम टर्म कंजर्वेशन ऑफ जर्मप्लाज्म परियोजना' के तहत आधुनिक स्टोरेज सिस्टम बनाया गया. जिसके नहीं होने के चलते हर साल करीब 50 एकड़ में 6 हजार किस्मों के प्लाज्मा की फसल को लागकर रखा जाता था, लेकिन अब समय के साथ इनके स्टोरेज की व्यवस्था कर दी गई है.

प्रदेश का सबसे बडा स्टोरेज सेंटर

पवारखेड़ा अनुसंधान केंद्र मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र है. जहां पर गेहूं की सबसे अधिक किस्म को स्टोर किया जाता है. ये अंग्रेजों के जमाने से ही प्रदेश का सबसे बड़ा स्टोरेज केंद्र रहा है, जहां पर गेहूं की लगभग सभी किस्मों को स्टोर किया जाता है. लगातार इनके ऊपर रिसर्च भी किया जाता रहा है.

गेहूं की नई 52 किस्मों को किया ईजाद

पवारखेड़ा रिसर्च सेंटर ने अब तक गेहूं की 52 किस्में इजाद की गई हैं. आज के करीब 125 साल पहले तक किसी भी गेहूं बीज को बतौर वैरायटी पहचान नहीं थी. किसान के पास जो दाने रहते थे, वो उसे लगा देता था, जो असल में अलग-अलग किस्म के होते थे, लेकिन अब गेहूं की किस्मों को इजाद कर दिया गया है. 52 नई किस्मों के गेहूं को भारत सरकार द्वारा मान्यता दी गई है और जिनके बीज का उत्पादन कर किसानों को सब्सिडी के तौर पर वितरित किया जाता है.

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