होशंगाबाद।सतरास्ते के पास रहाने वाले मुकेश नगर पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में कौवों की खोज के लिए परेशान हो रहे हैं. इसके लिए वह रोज सुबह शहर के पास स्थित जंगल में कौवे की खोज करते हैं. कौवे (Crow Significance in Pitru Paksha) मिलने पर उन्हें अपने पुरखे मानकर भोजन कराते हैं. इसी प्रकार रसूलिया के सुनील बामालिया भी जंगल में जाकर कौवे की खोज के लिए परेशान हो रहे हैं. श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksha) में कौवे को अपने पुरखे मानकर मान्यता निभाने के लिए वह जंगल में कौवे की खोज में लगे रहते हैं. जब कौवे भोजन कर लेते हैं, तब घर वापस आते हैं. ऐसा इसलिये हो रहा है क्योंकि घरों की छतों से धीरे-धीरे कौवे गायब होने लगे हैं.
कौवों की संख्या में आई दिन आ रही कमी
पहले श्राद्ध पक्ष में भोजन रखते ही छतों पर कौवे मंडराने लगते थे, लेकिन अब कौवों की घटती संख्या के कारण पितृ पक्ष में कौवे की कमी लोगों को खल रही है. पक्षियों पर रिसर्च करने वालों की माने तो पेस्टिसाइड (Pesticide), कीटनाशक ओर घटते जंगल के कारण कौवे की संख्या में आए दिन कमी आ रही है. यही कारण है कि मानव बस्तियों के निकट पाए जाने वाले कौवों की संख्या अब बहुत कम देखने को मिलती है. पहले जहां श्राद्ध पक्ष में बड़ी संख्या में कौवे घरों के छतों के आस-पास बड़ी संख्या में आते थे. अब उन्हें भोजन कराने के लिए लोगों को जंगलों में जाना पड़ रहा है.
तीन कारणों से विलुप्त हो रहे कौवे
शोधकर्ता रवि उपाध्याय ने कौवों का कम होने के तीन बड़े कारण बताये हैं. उन्होंने कहा कि मरने के बाद जानवरों को इक्लोफिनायक या हार्मोन का इंजेक्शन दे दिया जाता है. जब इन मृत पक्षियों को कौवे खाते हैं तो उनके अंडे कमजोर हो जाते हैं, जिससे उनके बच्चे नहीं होते. पेस्टीसाइड का उपयोग कर चूहे और छिपकली को मार देना दूसरा बड़ा कारण है. जब मृत चूहे या छिपकली को कौवे खाते हैं तो उनके अंदर बायोमैग्नीफिकेशन जैसा जहर बढ़ जाता है और उनकी भी मृत्यु हो जाती है. तीसरा बड़ा कारण है, पेड़ों की कटाई. पेड़ों की कटाई होने से कौवों को बैठने का स्थान नहीं मिल पा रहा, जिससे शहरों से अब कौवे विलुप्ति की कगार पर हैं.