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MP Seat Scan Timarni: टिमरनी सीट पर खत्म होगा हार का सूखा या फिर खिलेगा कमल, जानें राजनीतिक परिदृश्य

चुनावी साल में ईटीवी भारत आपको मध्यप्रदेश की एक-एक सीट का विश्लेषण लेकर आ रहा है. आज हम आपको बताएंगे हरदा जिले की टिमरनी विधानसभा सीट के बारे में. इस सीट पर पहले कांग्रेस का तो बाद में बीजेपी का दबदबा देखने मिला. यहां 6 बार कांग्रेस तो 3 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है. वहीं वर्तमान में इस सीट पर बीजेपी का विधायक है. हालांकि पिछले चुनाव में बीजेपी ने खास बड़े अंतर से जीत हासिल नहीं की थी, इस चुनाव में यहीं बीजेपी के लिए परेशानी की वजह है. देखना होगा इस बार टिमरनी सीट पर कांग्रेस एक बार अपनी पुरानी जीत को यहां दोहराएगी या बीजेपी जीत हासिल करेगी.

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Published : Jun 6, 2023, 6:16 AM IST

भोपाल। टिमरनी विधानसभा का चुनावी इतिहास रोचक रहा है. इस सीट पर परिसीमन के पहले कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन परिसीमन के बाद यहां बीजेपी हावी हो गई. 1962 से लेकर अभी तक इस सीट पर 13 बार चुनाव हुए, लेकिन एक बार ही यह सीट निर्दलीय के खाते में गई. इसके अलावा यहां कभी बीजेपी हावी तो रही तो कभी कांग्रेस. यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर करीबन 45 फीसदी कोरकू और गोंड समुदाय के वोटर हैं, जो पार्टियों के चुनावी गणित को सीधे प्रभावित करते हैं. हालांकि दोनों ही मुख्य पार्टियां हर बार इस वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश करती है.
क्या रहा इस सीट का इतिहास: गेहूं उत्पादन के मामले में मिनी पंजाब कहे जाने वाले हरदा जिले में टिमरनी विधानसभा आती है. टिमरनी विधानसभा 1962 में अस्तित्व में आई, हालांकि 2003 में परिसीमन के बाद इस सीट का राजनीतिक गणित बदल गया. 2003 के पहले टिमरनी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन बाद में यह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई. परिसीमन के बाद यह सीट बीजेपी के कब्जे में आ गई. 1962 से 2003 तक इस सीट पर 10 विधानसभा चुनाव हुए, इसमें से 6 चुनाव में कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की. 3 चुनाव में ही बीजेपी अपना दबदबा कायम कर सकी. जबकि 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां से जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की.

टिमरनी सीट के मतदाता

2003 के बाद बदला सियासी गणित: 2003 के चुनाव के बाद परिसीमन से टिमरनी विधानसभा सीट से कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ती गई. परिसीमन के बाद यह विधानसभा अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हुई. जातिगत स्थिति का असर क्षेत्र की राजनीति पर पड़ा. इस सीट पर निर्णायक हुए कोरकू और गोंड का वोट बैंक जिस ओर झुका उसे जीत मिलती गई. परिसीमन के बाद मकडाई राजपरिवार और गौंड परिवार से आने वाले मंत्री विजय शाह के भाई संजय शाह मजबूत नेता बनकर उभरे. हालांकि 2008 में बीजेपी ने उन्हें कमजोर उम्मीदवार मानते हुए अंजना गजेन्द्र शाह को चुनाव में उतारा. इसके विरोध में संजय शाह निर्दलीय मैदान में उतरे और 3 हजार 691 वोटों से जीत दर्ज की.

टिमरनी सीट का रिपोर्ट कार्ड

2013 का विधानसभा चुनाव: साल 2013 के विधानसभा चुनाव में संजय शाह बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे. जबकि कांग्रेस ने रमेश राधेलाल इवने को टिकट दिया. जहां बीजेपी के संजय शाह ने 16507 वोटों से जीत दर्ज की.

2018 का विधानसभा चुनाव: साल 2018 के विधानसभा चुनाव में चाचा भतीजे मैदान में आमने-सामने उतरे. बीजेपी ने संजय शाह को मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने मकड़ाई राजपरिवार के सदस्य अभिजीत शाह को मैदान में उतारा. दोनों के बीच जबरदस्त चुनावी मुकाबला हुआ और बीजेपी मामूली अंतर से जीत गई. बीजेपी के संजय शाह ने 2,213 वोटों से जीत हासिल की.

साल 2018 का रिजल्ट

सीट स्कैन से जुड़ी कुछ खबरें यहां पढ़ें

जातिगत गणित में साधने में जुटी पार्टियां:विधानसभा चुनाव के पहले दोनों ही पार्टियां जातिगत गणित के हिसाब से रणनीति बनाने और मतदाताओं को साधने में जुट गई हैं. हरदा जिले में आने वाली टिमरनी विधानसभा में कुल मतदाता 1 लाख 85 हजार 403 हैं. इसमें 96 हजार 75 पुरुष मतदाता, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 89 हजार 328 है. इसमें करीब 45 फीसदी मतदाता कोरकू और गोंड जनजाति के हैं. इसके अलावा 35 हजार जनसंख्या क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाता, 40 हजार ओबीसी और अन्य हैं.

टिमरनी सीट का जातीय समीकरण

कांग्रेस और बीजेपी कौन करेगा जीत हासिल:2018 के चुनाव में बीजेपी की जीत का मार्जिन घटने से पार्टी अभी भी परेशान है. उधर क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के अभाव, कई आदिवासी गांवों में बिजली, पानी जैसे समस्याएं चुनाव में बीजेपी की मुश्किल बढ़ा सकती है. देखना होगा आगामी चुनाव में कांग्रेस की हार का सूखा खत्म होता है या बीजेपी फिर स्थानीय लोगों की नाराजगी दूर कर फिर जीत का झंडा फहराने में सफल होती है.

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