ग्वालियर। ग्वालियर चंबल अंचल में एकमात्र यमराज (Lord Yamraj) का मंदिर है, जो लगभग 300 साल पुराना है और दिवाली के 1 दिन पहले नरक चौदस पर यमराज की पूजा अर्चना और अभिषेक किया जाता है. यमराज का मंदिर (Temple of Yamraj) सुनने में अजीब जरूर लगता होगा, पर यह बात बिल्कुल सही है. यही वजह है कि नरक चौदस के दिन यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान यमराज के दर्शन करते हैं. इस मंदिर की काफी मान्यता है. इस विशेष रिपोर्ट में देखिए मंदिर की विशेषताएं.
300 साल पुराना है यमराज का मंदिर
ग्वालियर के बीचों-बीच फूलबाग पर स्थित मारकंडेश्वर मंदिर (Markandeshwar Temple) है. इस मंदिर में यमराज की यह प्रतिमा सिंधिया वंश के राजाओं ने लगभग 300 साल पहले स्थापित की थी. मंदिर की सेवा कर रहे छठी पीढ़ी के पुजारी बताते हैं कि मंदिर का निर्माण मराठा परिवार के संताजी राव तेमक ने कराया था. इस मंदिर में भगवान शिव के सामने यमराज हाथ जोड़कर बैठे हैं. इसमें दिखाया गया है कि मारकंडेश्वर शिवलिंग को पकड़े हैं, जिन्हें यमराज लेने आया है. इस पर भगवान शिव त्रिशूल लेकर प्रकट हुए यमराज को दंडित कर रहे हैं.
नरक चौदस की पौराणिक कथा
यमराज की नरक चौदस पर पूजा अर्चना करने को लेकर पौराणिक कथा भी है. कहा जाता है कि यमराज ने जब भगवान शिव की तपस्या की थी, तब इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यमराज को वरदान दिया था कि आज से तुम हमारे गण माने जाओगे और दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर जो भी तुम्हारी पूजा-अर्चना और अभिषेक करेगा, उसे जब सांसारिक कर्म से मुक्ति मिलने के बाद उसकी आत्मा को कम से कम यातनायें सहनी होंगी. यही नहीं उस आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होगी. तभी से नरक चौदस पर यमराज की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.