ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय में एक महत्वपूर्ण शोध में अर्थराइटिस की दवा के लिए ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम (Transdermal Drug Delivery System) तैयार किया गया है. इसी दवा को त्वचा के जरिए सीधे खून में भेजा जाता है. सबसे खास बात यह है कि इसके जरिए टेबलेट और कैप्सूल फॉर्मेट में दवा पेट में नहीं जाती. जिस कारण इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, दवा खून में बह जाने से ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करती है. ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम का फिल्म रूप में पेंच तैयार किया गया है.
इस पेंच में दवा को भरा जाता है इसके बाद इसे शरीर के उस हिस्से में चिपकाया जाता है, जहां स्किन सॉफ्ट होती है. इसके बाद इस पेंच से दवा निकलकर सीधे खून में मिल जाती है. इसके जरिए दवा खून में मिलकर अपना असर दिखाती है. इस रिसर्च को जीवाजी विश्वविद्यालय के फॉर्मेसी विभाग के प्रोफेसर नवनीत गरुड़ के अंडर में पीएचडी शोध कर रहे रमाकांत जोशी ने मिलकर तैयार किया है. विश्वविद्यालय इस रिसर्च की पेटेंट कराने का भी काम कर रहा है.
अर्थराइटिस वाले मरीजों के लिए वरदान रिसर्च
प्रोफेसर नवनीत गरुण बताते है कि भारत की 15 फीसदी आबादी अर्थराइटिस से पीड़ित है. यह बीमारी बुजुर्गों के साथ-साथ अब युवाओं को विशेषकर 30 से 50 साल की उम्र तक वाले लोगों की खराब लाइफस्टाइल के कारण बहुत तेजी से पैर पसार रही है. साथ ही यह रोग पुरुषों की तुलना में महिलाओं में 3 गुना तेजी से फैल रहा है. प्रोफेसर गरुण बताते है कि अर्थराइटिस वाले मरीजों को कई गोलियां खानी पड़ती है.
इस कारण इसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं. जीवाजी विश्वविद्यालय की इस रिसर्च से अर्थराइटिस वाले मरीजों को काफी राहत मिलेगी. क्योंकि इस दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं है. यह दवा सीधे स्किन के जरिए शरीर के अंदर पहुंचती है और अपना असर दिखाती है. अर्थराइटिस वाले मरीजों के लिए यह रिसर्च वरदान के समान है.
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