ग्वालियर। भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी (former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee) की आज तीसरी पुण्यतिथि (third death anniversary) है, आज ही के दिन साल 2018 को उन्होंने लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह दिया था. अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) यह एक नाम मात्र नहीं है, बल्कि खुद में एक युग, राजनीति का एक दौर और एक संस्कृति है. अटलजी जितने ओजस्वी राजनेता थे उतने ही प्रभावी कवि (Poet Atal Bihari Vajpayee) भी थे. उनकी कविता आज भी जीवन के मूल्यों को संजोए हुए है. अटलजी ने अपने जीवन की पहली कविता पन्द्रह अगस्त का दिन कहता है, आजादी अभी अधूरी है, 15 अगस्त 1947 के दिन ही कानपुर डीएवी कॉलेज के छात्रावास के कमरा नंबर 104 में लिखी थी.
अटल बिहारी की तांबे-कांसे की 12 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण, सुशासन दिवस पर तोहफा
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे भारत रत्न पंडित अटल बिहारी वाजपेयी (Bharat Ratna Atal Bihari Vajpayee) का एमपी से बेहद लगाव रहा, जबकि उनकी उच्च शिक्षा कानपुर में हुई और उत्तर प्रदेश को ही उन्होंने अपना कर्मक्षेत्र बनाया था. (India Independence Day Speech) अटल बिहार वाजपेयी ने लाल किले की प्राचीर से देश को छह बार संबोधित किया था. वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिसे लाल किले (Red Fort) से इतनी बार भाषण देने का मौका मिला था. उनके भाषण में नाटकीयता और लंबे अंतराल के बीच कविताओं की पंक्ति उसे शानदार बना देती थी. सीएम शिवराज सिंह ने श्रद्धांजलि दी है.
'जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा...'
जब पहली बार लाल किले से वाजपेयी का भाषण हुआ था, उस वक्त उनके सुनने वालों का वहां पर तांता लग गया था. वाजपेयी से देश को बहुत सारी उम्मीदें थीं. 15 अगस्त 1998 को अटलजी ने पहली बार लाल किले की प्राचीर से अपना भाषण दिया था. 11 और 13 मई को पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण (Pokhran nuclear test) की धमक उनके भाषण में साफ सुनाई पड़ी थी. वाजपेयी ने अपने पहले ही भाषण में भारत के बदलते हुए तेवर की झलक दे दी थी. अटल जी प्रखर वक्ता के साथ ही कवि भी थे, उनकी आज भी सियासत में मिसालें दी जाती हैं.