ग्वालियर। हर व्यक्ति की एक कामयाब जिंदगी में शिक्षक (Teacher) की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. शिक्षक ही है जो कामयाब होने के लिए सही रास्ते पर चलने के लिए हमें प्रेरित करता है. शिक्षक दिवस के मौके पर हम ऐसे ही शिक्षक की बात करेंगे जो ग्वालियर स्थित राज्य महिला हॉकी एकेडमी (State Women's Hockey Academy) में कोच के रूप में खिलाड़ियों के सपनों को ऊंची उड़ान दे रहा है.
इस कोच ने ग्वालियर चंबल अंचल में महिला खिलाड़ियों के प्रति अवधारणा को ही बदल दिया है. एक समय ऐसा भी था जब चंबल के इलाके में कोई भी परिवार अपनी बच्ची को खेल के मैदान में नहीं उतरता था, लेकिन आज इस अंचल में कोच की मेहनत और लगन से बच्चियां घर से निकल कर मैदान तक आ रही है. देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में नाम रोशन कर रही है. आइए आज हम मिलाते हैं ऐसे ही कोच परमजीत सिंह (Coach Paramjit Singh) से...
पंजाब के कोच को ग्वालियर महिला हॉकी खिलाड़ियों की मिली जिम्मेदारी
साल 2006 में हॉकी के प्रति महिलाओं को आगे लाने के लिए ग्वालियर में स्थित महिला राज्य हॉकी एकेडमी की स्थापना हुई. लेकिन इस महिला हॉकी एकेडमी में कोच की कमी के चलते अपना परफॉर्मेंस साबित नहीं कर पा रही थी. उसके बाद पंजाब के रहने वाले परमजीत सिंह महिला हॉकी एकेडमी में कोच के रूप में तैनात हुए. कोच परमजीत को इस अकादमी में खिलाड़ियों को तैयार करने की जिम्मेदारी मिली. पिछले 15 साल से परमजीत सिंह इस एकेडमी में नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ी (International Player) तैयार कर रहे हैं.
कोच परमजीत सिंह पंजाब के उस इलाके के रहने वाले हैं. जहां पर हॉकी खेल को काफी महत्व दिया जाता है. वहां एक से बढ़कर एक हॉकी प्लेयर्स है. परमजीत सिंह जब ग्वालियर में मेला राज्य हॉकी एकेडमी में आए थे, तो उस समय सब कुछ सामान्य था. इस एकेडमी की कोई पहचान भी नहीं थी. उसके बाद इस एकेडमी का सफर शुरू हुआ. आज 15 साल बाद खिलाड़ी और कोच परमजीत की मेहनत पर यह राज्य महिला हॉकी एकेडमी प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में अपना परचम लहरा रही है.
खेलो के लिए लड़कियों को बाहर निकालना सबसे बड़ी चुनौती
कोच परमजीत सिंह बताते हैं कि साल 2006 में जब इस राज्य महिला हॉकी एकेडमी की शुरुआत हुई थी, तो उस समय मात्र 14 खिलाड़ी थे जिन्हें तैयार करना था. उस समय मध्य प्रदेश में हॉकी के प्रति कोई भी रुझान नजर नहीं आ रहा था. खासकर ग्वालियर चंबल इलाका, जहां बच्चियों को अपनी दहलीज से बाहर भी नहीं आने दिया जाता था. अंचल में उस समय लड़कियां खेल के प्रति सोच भी नहीं सकती थी ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि इस एकेडमी में महिला खिलाड़ियों को कैसे तैयार किया जाएगा.
लेकिन धीरे-धीरे कठोर परिश्रम और मेहनत से इस एकेडमी की मेला खराड़ी प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी नाम रोशन करती रही. खेल के प्रति लोगों की सोच भी बदली. आज इसका नतीजा यह है कि इस एकेडमी में अंचल ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश और देशभर से माता पिता अपने बच्चों को ला रहे हैं. इस एकेडमी में 14 महिला खिलाड़ियों से शुरुआत हुई थी और आज 100 से अधिक पहुंच चुकी है.