ग्वालियर। जिले से धान और तिल के देश से बाहर निर्यात की संभावनाएं खत्म हो गई हैं. धान और तिल के निर्यात से पहले किसान कल्याण विभाग ने पेस्ट फ्री एरिया का सर्वे कर रिपोर्ट मांगी थी. रिपोर्ट में ऐसा एक भी गांव नहीं मिला, जहां किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करते हों.
रशियन संघ ने ग्वालियर अंचल की धान और तिल के निर्यात को टाला
रशियन संघ ने ग्वालियर से बिना रासायनिक खाद के उपयोग वाली धान और तिल की मांग की थी, लेकिन एक भी गांव नहीं मिला, जहां रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया गया हो. इसके चलते निर्यात टाल दिया गया है.
दरअसल रशियन संघ ने मांग की थी कि उन्हें ग्वालियर में उत्पादित होने वाला धान और तिल चाहिए, जिसके पास कृषि कल्याण विभाग ने जिले की उत्तम पैदावार वाली 24 गांव में 5 सदस्यीय टीम को सर्वे के लिए भेजा था. सर्वे करने गई टीम ने पाया कि जिले में कोई भी ऐसा किसान नहीं है, जो धान और तिल की फसल बिना रासायनिक उर्वरक के प्रयोग की हो, जबकि रशियन संघ ने जैविक तौर पर उत्पादित फसल की मांग की थी.
रशियन संघ को निर्यात के पीछे रासायनिक खाद के प्रयोग के बाद विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. जैविक खेती के प्रचार-प्रसार के लिए कृषि विभाग हर साल करोड़ों रुपए का बजट खर्च करता है, लेकिन उसके बावजूद भी जिले में कोई भी ऐसा किसान उन्हें नहीं मिला जो जैविक खेती करता हो. कृषि कल्याण विभाग जिले के सभी विकास खंडों में 50-50 किसानों को चिन्हित कर उन्हें जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करने का प्लान बना रहा है, ताकि आने वाले सालों में ग्वालियर रशियन संघ को धान और तिल निर्यात कर सके.