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आलू की पहली टिश्यू कल्चर लैब होगी स्थापित, कई प्रकार के आलू का होगा प्रसंस्करण - ग्वालियर के किसान

ग्वालियर के बेहटा गांव के पास आलू की पहली टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना होने जा रही है. जिसमें आलू की विभिन्न किस्मों का ना सिर्फ उत्पादन होगा बल्कि उसका प्रसंस्करण भी किया जाएगा.

Potatoes first tissue culture lab will be established in gwalior
टिश्यू कल्चर लैब

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Published : Jun 8, 2021, 2:34 AM IST

ग्वालियर।जिले के बेहटा गांव के पास आलू की पहली टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना होने जा रही है. जिसमें आलू की विभिन्न किस्मों का ना सिर्फ उत्पादन होगा बल्कि उसका प्रसंस्करण भी किया जाएगा. फिलहाल जो किसान ग्वालियर में आलू का उत्पादन करते हैं वह सब्जी के रूप में उपयोग होने वाले आलू का उत्पादन करते हैं. टिश्यू कल्चर लैब के खुलने से आलू की गुणवत्ता सुधरेगी. साथ ही 20 फीसदी तक इसका उत्पादन भी बढ़ाया जा सकेगा.

आलू की पहली टिश्यू कल्चर लैब होगी स्थापित

20 फीसदी बढ़ेगा आलू का उत्पादन

इस टिश्यू कल्चर लैब के पीछे एक बहुत बड़ा मकसद है. केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से यह लैब 40 बीघा क्षेत्र में स्थापित की जाएगी. जिसमें 10 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है. टिश्यू कल्चर लैब की मदद से एक ही पौधे से कई पौधे तैयार करना इसका मकसद है. ग्वालियर में फिलहाल आलू के संदर्भ में सिर्फ रिसर्च लैब है, जबकि बेहटा गांव में टिश्यू कल्चर लैब पहली अपने तरह की लैब होगी. यहां किसानों को ट्रेनिंग भी दी जाएगी. लैब की स्थापना के साथ ही आलू पैदा करने वाले किसानों को प्रशिक्षण की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी.

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आलू उत्पादन को 20 फीसदी तक बढ़ाने और उसकी फसल तैयार होने में कम समय लगने की भी तकनीक इस टिश्यू कल्चर लैब के जरिए बताई जाएगी. ग्वालियर में फिलहाल 5000 से ज्यादा किसान 48 हजार मैट्रिक टन से ज्यादा आलू पैदा करते हैं. लेकिन यह सामान्य वैरायटी के होते हैं. टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना के बाद किसान गुजरात और अन्य प्रदेशों की तरह अच्छी वैरायटी वाले आलू उत्पादित कर सकेंगे.

आलू का होगा प्रसंस्करण

4 की जगह तीन साल में तैयारी होगा बीज

टिशू कल्चर लैब में बीमार पौधे की सेल से स्वस्थ पौध टेस्ट ट्यूब में तैयार किया जाता है. इसमें माइक्रो ट्यूबर और माइक्रो प्लांट पद्धति से किसी भी सीजन में वातानुकूलित हॉल और नेट हाउस में यह काम किया जा सकता है. इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि 4 साल में तैयार होने वाला बीज सिर्फ 3 साल में तैयार हो सकता है.

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