ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने पुलिस सर्कुलर 2014 के उस नियम पर रोक लगा दी है, जिसमें किसी भी व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर उसका फोटो सोशल मीडिया पर वायरल की जाती थी. हाईकोर्ट का कहना है कि, किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से उसे तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक न्यायालय अंतिम तौर पर उसे दोषी करार न दे.
गिरफ्तार व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जा सकता दरअसल बहोड़ापुर थाना क्षेत्र में एक महिला की शिकायत पर अरुण शर्मा के दुकान को खाली करवाया गया था. वहीं कुछ दिनों बाद उसे 5 हजार रुपये का इनामी घोषित कर उसके साथ मारपीट भी की गई थी. सिर्फ इतना ही नहीं उसकी फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गई थी.
यह मामला जब पुलिस अधीक्षक की जानकारी में आया, तब पता चला कि अरुण शर्मा निर्दोष है. किसी अन्य अरुण शर्मा नाम के व्यक्ति पर 5 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था, जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि, पुलिस ने जानबूझकर अनुज शर्मा को प्रताड़ित किया था. साथ ही हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा दीवानी मामले में हस्तक्षेप किए जाने को भी गंभीरता से लिया है. इसको लेकर बीजेपी को आदेशित किया गया है कि, भविष्य में बिना न्यायालय की परमिशन के पुलिस किसी भी दुकान या मकान को खाली नहीं करा सकती है. अगर ऐसा होता है, तो संबंधित पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
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हाईकोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि, वे प्रदेश के सभी पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करें. साथ ही सोशल मीडिया पर फरियादी और आरोपी की फोटो वीडियो दोषी साबित होने तक अपलोड नहीं करें. इस मामले में तत्कालीन थाना प्रभारी दिनेश राजपूत ने अरुण शर्मा को गिरफ्तार किया था, जिसे गंभीरता से लेते हुए एसपी ने तत्कालीन थाना प्रभारी को कुछ दिनों के लिए लाइन अटैच कर दिया था, फिर वापस उसी थाने में उन्हें पदस्थ कर दिया गया था. इस पर अरुण शर्मा ने हाईकोर्ट में मानहानि की एक याचिका दाखिल की है, जिसमें दोषी पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और कंपनसेशन देने की मांग की गई है. अब इस पूरे मामले की अंतिम सुनवाई 9 नवंबर 2020 को होगी.