ग्वालियर। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर उज्जैन से विधायक मोहन यादव को अबकी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया है. उनके साथ दो डिप्टी सीएम ने भी शपथ ली है. इसके बावजूद भी मध्य प्रदेश में किसी प्रकार का कुछ जश्न देखने को नहीं मिला. सीनियर नेताओं के चेहरे का नूर उड़ा हुआ है. इसका कारण यह है कि जिन दिग्गजों के चेहरे पर अबकी बार चुनाव लड़ा गया पार्टी ने उनको ही दरकिनार कर दिया है. इन सभी दिग्गजों ने प्रदेश में पार्टी को बंपर सीटें दी, लेकिन इसके बावजूद इसके बदले में उन्हें निराशा और हताशा ही हाथ लगी है.
हाशिये पर कद्दावर नेता:मध्य प्रदेश में मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में बीजेपी का कमल खिलाने का दारोमदार पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेता कैलाश विजयवर्गीय, नरेन्द्र सिंह तोमर, सिंधिया और प्रहलाद पटेल को सौंपा गया. यह सभी चारों नेता प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के दिग्गज नेता माने जाते हैं और इन सभी नेताओं का अपने इलाकों में वर्चस्व होने के कारण पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति से उतार कर विधानसभा का चुनाव लड़ाया. इसके बाद इन सभी दिग्गज और उनके समर्थकों को यह उम्मीद थी कि यह सभी प्रदेश में मुख्यमंत्री के नए दावेदार हैं. इसके साथ ही इन सभी दिग्गजों को उम्मीद थी कि उन्हें प्रदेश स्तर की राजनीति में एक बड़ा कद मिलेगा. लेकिन इन सभी दिग्गजों को पार्टी ने हाशिए पर रखकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
सीएम की रेस से बाहर:ग्वालियर चंबल अंचल की बात करें तो अबकी बार पार्टी ने केंद्रीय मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर को उनके ही क्षेत्र दिमनी विधानसभा से चुनाव लड़ाया और वह बंपर वोटों से जीते. विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने उनका सांसद और मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया. इसके बाद उनके समर्थक और अंचल की जनता यह मान रही थी कि पार्टी मध्य प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर को एक बड़ा पद देने जा रही है जिसमें मुख्यमंत्री का चेहरा सबसे पहले था, लेकिन जब पार्टी ने मुख्यमंत्री की घोषणा की तो तोमर को मुख्यमंत्री की रेस बाहर कर दिया. हालांकि संतोष इस बात पर कर सकते हैं कि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया.
सिंधिया को नहीं मिली तवज्जो:याद कीजिए 2020 में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थामकर बीजेपी की सरकार बनवाई थी. उस समय भी यही चर्चा थी कि कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने के कारण सिंधिया ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया. इस बार उनकी भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर संभावनाएं जताई जाने लगीं थी. इसका कारण यह था कि इस विधानसभा चुनाव में सिंधिया को स्टार प्रचारक के रूप में पूरे मध्य प्रदेश में प्रचार प्रसार कराया गया. साथ ही प्रचार प्रसार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह लगातार सिंधिया की तारीफ करते हुए नजर आए. इसलिए ऐसा लग रहा था कि अबकी बार प्रदेश की कमान सिंधिया को मिल सकती है, लेकिन इस बार सिंधिया को मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई तवज्जो नहीं मिल पाई.