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बिजली कंपनियां चोरी रोकने में नाकाम, उपभोक्ताओं को लगाती हैं 'घाटे' का करंट, 10 साल में दो गुना बढ़ चुके हैं दाम - एमपी बिजली कंपनियां चोरी रोकने में नाकाम

बिजली कंपनियां भी बिजली चोरी रोकने में नाकाम साबित हो रही हैं, लिहाजा वे अपने नुकसान के भरपाई करने के लिए ईमानदारी से बिजली का बिल भरने वाले उपभोक्ताओं को निशाना बना रही हैं. उपभोक्ताओं को खपत से ज्यादा के बिल भेजे जाते हैं और बीते 10 साल में बिजली की दरों में दोगुना से ज्यादा बढ़ोत्तरी कर दी गई है.

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बिजली कंपनियां चोरी रोकने में नाकाम

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Published : Sep 2, 2021, 6:15 PM IST

भोपाल/ ग्वालियर. मध्य प्रदेश के हर उपभोक्ता पर बिजली कंपनियों का 25000 रुपए का कर्ज है. बिजली चोरी की दर भी सबसे ज्यादा है. सबसे ज्यादा बिजली चोरी के मामले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) के गृहक्षेत्र ग्वालियर (gwalior chambal reason) चंबल अंचल से सामने आए हैं. बिजली कंपनियां भी इस चोरी को रोकने में नाकाम साबित हो रही है, लिहाजा वे अपने नुकसान के भरपाई करने के लिए ईमानदारी से बिजली का बिल भरने वाले उपभोक्ताओं (electricity consumers)को निशाना बना रही हैं. उपभोक्ताओं को खपत से ज्यादा के बिल भेजे जाते हैं और बीते 10 साल में बिजली की दरों में दोगुना से ज्यादा बढ़ोत्तरी कर दी गई है.

हर उपभोक्ता पर है 25 हजार का कर्ज

प्रदेश में हर बिजली उपभोक्ता पर बिजली कंपनियों ( electricity distribution compony) का 25 हजार का कर्ज है. आंकड़े आपको हैरान जरूर करते होंगे लेकिन कंपनियों की बैलेंस शीट में यही दर्ज है. पिछले 5 साल में बिजली कंपनियों को 39 हजार 812 करोड़ का नुकसान हुआ है. इस नुकसान के लिए बिजली कंपनियां बिजली चोरी को वजह मानती हैं. आपको बता दें कि विद्युत वितरण करने वाली कंपनियों ने अपने नुकसान की वसूली के लिए विद्युत नियामक आयोग से प्रदेश के पौने 2 करोड़ ईमानदार उपभोक्ताओं (electricity consumers) से वसूली की अनुमति मांगी है. मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कार्पोरेशन के अलावा प्रदेश के तीन और विद्युत वितरण कंपनियों ने साल 2019- 20 में 4752.20 करोड़ का घाटा बता कर इसे उपभोक्ताओं से वसूलने के लिए आयोग से गुहार लगाई है. बिजली कंपनियों को बिजली चोरी से 2014 से 2020 तक हुए नुकसान को वसूले जाने के मामले में अलग-अलग सत्यापन याचिका आयोग के समक्ष विचाराधीन हैं.

बिजली कंपनियां चोरी रोकने में नाकाम
बिजली चोरी रोकने में कंपनियां नाकाम, उपभोक्ताओं पर थोपती हैं बढ़े हुए बिलमध्य प्रदेश में बिजली चोरी के लिए कुख्यात ग्वालियर चंबल इलाका जो कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से ताल्लुक रखता है, यहां बिजली चोरी के सबसे ज्यादा मामले आए हैं, लेकिन जनप्रतिनिधि और मंत्रियों के दवाब के चलते बिजली चोरी की इन घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है. बिजली कंपनियों का नुकसान भी लगातार जारी है. इस नुकसान की भरपाई बिजली कंपनियां उन उपभोक्ताओं (electricity consumers)से करती हैं जो ईमानदारी से बिजली का बिल देते हैं. इन उपभोक्ताओं को कंपनियां खपत से ज्यादा के बिल भेज रही हैं, वहीं दूसरी तरफ नुकसान की भरपाई करने के नाम पर बीते 10 साल में प्रदेश में बिजली की दरें (elctric rate) दोगुनी से चुकी हैं.

2019 में इतना रहा तीनों बिजली वितरण कंपनियों का घाटा

पूर्व क्षेत्र 2458.33 करोड़
मध्य क्षेत्र 1990.16 करोड़
पश्चिम क्षेत्र 303.99 करोड़
---------------------------------------
कुल - 4752.48 करोड

बीते 10 साल दोगुना बढ़ी बिजली की कीमत

मध्य प्रदेश में पिछले 10 सालों में बिजली की दरें दो गुना बढ़ गई है. 2010 में बिजली प्रति यूनिट बिजली की कीमत 3.38 रुपए थी, जो अब 7 रुपए प्रति यूनिट हो गई है. प्रदेश में हाल ही में उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले बिजली बिल में 6 फीसदी की वृद्धि की गई है. खास बात यह है कि बिजली कंपनियों को यह नुकसान तब हो रहा है जब राज्य सरकार घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों के नाम पर बिजली कंपनियों को करोड़ों की सब्सिडी देती हैं. प्रदेश के उर्जा मंत्री बिजली कंपनियों को हो रहे नुकसान से इत्तेफाक नहीं रखते. ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है प्रदेश सरकार घरेलू उपभोक्ताओं को 5,000 करोड़ और किसानों को 16, 000 करोड़ की सब्सिडी दे रही है. बावजूद इसके बिजली कंपनियां लगातार बिजली की दरों में इजाफा करती जा रही हैं.

10 साल में इस तरह बढ़ी दरें

साल घरेलू उपभोक्ता कृषि उपभोक्ता इंडस्ट्रीज
2009-10 3.38 2.51 4.59
2010-11 3.92 3.14 5.10
2011-12 4.07 3.28 5.47
2012-13 4.66 3.57 5.81
2013-14 4.35 3.61 5.76
2014-15 5.04 3.72 5.85
2017-18 5.85 5.16 7.97
2018 -19 5.95 5.02 7.45
2019-20 6.43 5.46 8.54
2020-21 6.55 5.57 8.72

मिडिल क्लास पर पड़ रहा है सबसे ज्यादा असर
बिजली दरें बढ़ाए जाने का से सबसे ज्यादा असर मिडिल क्लास परिवारों पर पड़ रहा है जिनकी मासिक खपत डेढ़ सौ यूनिट से ज्यादा है, क्योंकि प्रदेश सरकार निचले तबके को 100 यूनिट की खपत पर 100 रुपए ही बिजली का बिल लेती है, जबकि बाकी राशि सब्सिडी के तौर पर सरकार की तरफ से दी जाती है.

सरकारें सियासी फायदे के लिए देती हैं सब्सिडी
सरकारें चाहे फिर वो कांग्रेस की हो या बीजेपी की अपने सियासी फायदे के लिए ही बिजली कंपनियों को हो रहे घाटे के बावजूद भी सब्सिडी के रूप में राहत देती हैं. इसकी गवाही ये आंकड़े देते हैं.

- 2008-09 में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव हुए, बिजली कंपनियों ने रेट में महज 3 पैसे का इजाफा किया.
- 2013- 14 चुनाव के दौरान बिजली कंपनियों ने दाम में कटौती की. 2012-13 में प्रति यूनिट कीमत 4 .66 पैसे प्रति यूनिट थी, इसे घटाकर 4.35 पैसे प्रति यूनिट किया गया.

- 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले बिजली की कीमत 5.85 पैसा प्रति यूनिट थी जो 2018-19 में बढ़कर 5.95 रुपए कर दी गई. इसमें 10 पैसे का इजाफा किया गया.

- इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में सरकार बदली और कांग्रेस की सरकार आई. बिजली कंपनी ने चुनाव के पहले प्रस्ताव बनाकर भेजा जिसमे 1.5 फीसदी औसत वृद्धि की गई, चुनाव नतीजे आने के बाद बिजली कंपनियों की तरफ से दोबारा संशोधित प्रस्ताव भेजा गया.

सरकार लाचार, न चोरी रुकी न बिजली कंपनियों का घाटा
खास बात यह है कि विद्य़ुत वितरण कंपनियों ने बिजली चोरी से हुए घाटे को लेकर जो (टीएंडडी) की रिपोर्ट जारी की उसमें पाया गया कि बिजली चोरी राकने की जिम्मेदारी जिस सरकार और मंत्रियों के हाथों में है उन्ही के विधानसभा क्षेत्रों में बिजली को नुकसान और बिजली चोरी की घटनाएं सबसे ज्यादा हुईं हैं.इसके साफ ही की सरकार, मंत्री और जनप्रतिनिधि बिजली चोरी की घटनाओं को रोकने और बिजली कंपनियों का घाटा कम करा पाने में नाकाम साबित हो रही हैं.

- सीएम शिवराज के क्षेत्र में बिजली कंपनी को 20.32 प्रतिशत का घाटा हुआ है, वहीं दूसरे मंत्रियों के क्षेत्रों में औसत 30% से ज्यादा घाटा दर्ज किया गया है.

- बिजली कंपनियों को सबसे ज्यादा घाटा 53 फीसद, ग्वालियर चंबल क्षेत्र में दर्ज किया गया है.

- अंचल के भिंड, मुरैना ऐसे क्षेत्र हैं जहां बिजली कंपनियों ने चोरी रोकने के लिए पुलिस और सेना की टुकड़ियों का भी इस्तेमाल किया, बिजली चोरी के हजारों प्रकरण भी बनाए गए इसके बावजूद इन क्षेत्रों में बिजली चोरी रोकने के मामले में कोई कमी नहीं आई है.

- बिजली चोरी रोकने के लिए बिजली कंपनियों को खुद की पुलिस बनाने का प्रस्ताव भी सरकार ने पारित किया गया था. बिजली चोरी रोकने के लिए शिवराज सरकार ने तीनों विद्युत वितरण कंपनियों को थाने खोलने के लिए भी पत्र लिखे, लेकिन बिजली कंपनियां अभी तक स्टाफ की भर्ती नहीं कर सकीं हैं.
- सरकार के इस प्रस्ताव में बिजली विभाग के हर थाने में दो उप निरीक्षक 4 सहायक उपनिरीक्षक 8 प्रधान आरक्षक 16 आरक्षक को तैनात किए जाने का प्रस्ताव था, लेकिन कंपनियों ने इसपर गंभीरता कोई कार्रवाई नहीं की.

इस पूरे मामले की सच्चाई यह है कि बिजली कंपनियां अपने घाटे को पूरा करने के लिए कीमतें बढ़ाने और बिजली बिलों में हेराफेरी कर उपभोक्ता पर दबाव बढ़ाने को ही आसान तरीका मानती हैं, जिसका खामियाजा समय पर और ईमानदारी से बिल चुकाने वाले उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है.

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