सिंधिया अपने गढ़ में कितने ताकतवर? क्या वाकई ग्वालियर-चंबल में बीजेपी दो फाड़ हो गई है
सिंधिया का गढ़ कहे जाने वाले ग्वालियर-चंबल में यह चुनाव उनके लिए अग्निपरीक्षा कही जा रही है. कहा तो यह भी जा रहा है कि 2018 के चुनाव में अपनी ताकत दिखाने वाले महाराज बीजेपी में शामिल होने के बाद क्या वाकई में इस बार भी यहां कमाल दिखा पाएंगे.देखिए यह रिपोर्ट
ग्वालियर। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कई ऐसे दिग्गज नेता हैं जिनका भविष्य दांव पर लगा हुआ है. तो कई नेता ऐसे हैं जिनकी अग्नि परीक्षा है. इनमें सबसे बड़ा नाम केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का है क्योंकि कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए सिंधिया को पार्टी ने ग्वालियर की कमान उनको ही सौंप दी थी.अब उन्हें दिखाना होगा वह अपने गढ़ में कितने ताकतवर हैं.
2018 में ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस ने किया था कमाल:2018 के चुनाव में जिस तरीके से ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस ने यहां से सत्ता का रास्ता तय किया था उसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका ज्योतिरादित्य सिंधिया की बताई गई. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां 34 सीटों में से जो 26 सीटें जीती थीं जिनका श्रेय खुद कांग्रेस और बीजेपी ने सिंधिया को दिया था. उस दौरान सिंधिया का ग्वालियर चंबल अंचल में दबदबा था. अब जब सिंधिया बीजेपी में हैं तो उन्हें फिर साबित करना होगा कि उनका रुतबा और वजूद आज भी कायम है.
सिंधिया के लिए ये चैलेंज है:यह पहलामौका है जब केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में खुलकर बैटिंग कर रहे हैं. यही कारण है कि इस विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें ग्वालियर चंबल अंचल की कमान पूरी तरह सौंप दी है. इस बार ग्वालियर चंबल अंचल में उनके लगभग 18 समर्थक चुनावी मैदान में है. उन्होंने इस चुनाव में स्टार प्रचारक के रूप में ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो भी किए हैं. सबसे ज्यादा उन्हीं की सभाएं और दौरे हुए हैं. ग्वालियर के साथ-साथ अपने समर्थकों को जिताने की जिम्मेदारी पार्टी ने दी है और यह उनके लिए एक बड़ा चैलेंज है.
सिंधिया राजघराना हमेशा से पॉपुलर:वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि सिंधिया राजघराना हमेशा से पॉपुलर है और मध्य प्रदेश की सियासत में काफी वर्चस्व रखता है. 2018 में ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों में से कांग्रेस 26 सीटें जीती थी तब कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर बीजेपी तंज करती थी कि लड़का कोई और दिखाया और शादी किसी और से कर दी. यानी ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस को जो बंपर जीत मिली है उसके पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा था.
कांग्रेस को देखकर दिया था वोट:सिंधिया के वर्चस्व को लेकर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष आरपी सिंह का कहना है कि 2018 के चुनाव में सिंधिया के चेहरे पर यहां के लोगों ने वोट नहीं दिया बल्कि कांग्रेस को देखकर वोट दिया था. यही कारण है कि यहां से कांग्रेस ने 26 सीटें जीतीं थी. 2018 के चुनाव के बाद नगर निकाय के चुनाव हुए जिसमें सिंधिया के जाने के बाद नगर निगम ग्वालियर का चुनाव जीता. 56 साल बाद कांग्रेस ने यहां महापौर की सीट हासिल की तो वहीं मुरैना में भी नगर निकाय चुनावी कांग्रेस जीती.
ब्रजराज सिंह सिकरवार,भाजपा प्रवक्ता
बीजेपी कैडर वाली पार्टी:भाजपा प्रवक्ता ब्रजराज सिंह सिकरवार कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी या किसी नेतृत्व ने नहीं कहा कि 2018 के चुनाव में सिंधिया की वजह से ही सीटें आई थीं उस दौरान वहां अलग माहौल था जिसके कारण सीटें आईं थीं. उपचुनाव में जब सिंधिया जी बीजेपी में आ गए तो हमने यहां सबसे अधिक सीटें जीती थीं. भारतीय जनता पार्टी किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर नहीं चलती है. यहां सभी एक साथ पार्टी के लिए काम करते हैं.
क्या दो गुटों में बंट गई बीजेपी?:बीजेपी में आने के बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए सबसे बड़ा चैलेंज गुटबाजी रही है. जब से वह बीजेपी में शामिल हुए हैं तब से ग्वालियर-चंबल अंचल में बीजेपी दो गुटों में बंट गई. अंचल में सिंधिया समर्थक नेता और बीजेपी के मूल नेता कार्यकर्ता अलग-अलग दिखाई देने लगे. सिंधिया के कट्टर समर्थकों वाले इलाके में सिंधिया फैक्टर कितना काम कर रहा है यह नतीजों के बाद साफ दिखाई देगा.