ग्वालियर।प्रदेश की शिवराज सरकार हमेशा दावे करती है कि वह कर्मचारियों और उनके परिवारों के बड़ी हितैषी है. उनके हर दुख दर्द में सरकार सदैव साथ खड़े रहती है. इसी प्रकार अनुकंपा नियुक्ति को लेकर भी बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश विद्युत मंडल टूटकर विद्युत वितरण और ट्रांसमिशन कम्पनिया में काम करने वाले कर्मचारियो के परिजनों को तो कम से कम ऐसा नहीं लगता. मुख्यमंत्री ने हाल ही में अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर नई नीति बनाने का दावा किया है. दावा है कि तत्काल अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाएगी, लेकिन सच ये है कि बिजली महकमे में जान जोखिम में डालकर काम करते हुए अगर कोई मौत का शिकार हो जाता है तो उसके आश्रित को नौकरी नहीं मिल पाती है.
चक्कर लगा-लगाकर थक गए आश्रित :आश्रित परेशान होकर दफ्तर,अफसर और मंत्री के चक्कर लगा-लगाकर अधेड़ हो जाता है लेकिन उसे अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिलती. हालत ये हैं कि विद्युत मंडल के समय के साढ़े 5 हजार से ज्यादा परिवार दो दशकों से अनुकम्पा नियुक्ति की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन नौकरी है कि मिल ही नहीं पा रही. ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के ग्वालियर स्थित बंगले से निकल रहे अंशुल श्रीवास के पिता मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में कार्यरत थे. उन्होंने जीवनभर पूरी निष्ठा और मेहनत से अपने विभाग के लिए काम किया, लेकिन जब परिवार की जिम्मेदारी उठाने का समय आया तो सेवा के दौरान ही उनका निधन हो गया. तब अंशुल किशोरवय थे. विभाग के लोगों की मदद से उन्होंने 2012 में अपने पिता के रिक्त स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया.
सात साल से भटक रहे हैं अंशुल :अंशुल बताते हैं कि सात वर्ष बीत चुके हैं. अंशुल किशोर से युवा हो चुके हैं. अनुकम्पा नियुक्ति की आस में वे और कोई काम भी नहीं कर सके. वह अफसरों, दफ्तरों और मंत्री तक के यहां चक्कर लगाकर थक चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें नौकरी नहीं, सिर्फ आश्वासन मिले हैं. अंशुल श्रीवास अकेले ऐसे पीड़ित युवा नहीं हैं, जो विद्युत मंडल में कार्यरत अपने दिवंगत पिता के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति पाने के लिए चक्कर लगा रहे हों, बल्कि इनकी संख्या साढ़े 5 हजार से भी कहीं ज्यादा (5600)है. जिनके मुखिया ने सेवा के दौरान अपनी जान गंवाई और उनके परिजन उनके स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए सालों से एड़ियां रगड़ते हुए भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.