ग्वालियर। कांग्रेस के दो कद्दावर नेता, और राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने वाले माधवराव सिंधिया के सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सुपुत्र राहुल गांधी की दोस्ती का सिलसिला बेहद पुराना है. लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में आई तकरार, अच्छी भली दोस्तियों में न सिर्फ मतभेद पैदा करती है. बल्कि, कई बार ये सिलसिला मनभेद तक पहुंच जाता है और राजनीति के साथ-साथ व्यक्तिगत रास्ते जुदा कर लिए जाते हैं.
राजनीति में जीत-हार तय करती है, किसी भी नेता का भविष्य. ऐसा ही वक्त था, जब राहुल गांधी और सिंधिया पहली बार चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे. इसके बाद जीत का सिलसिले भी एक ही साथ थमा. इसमें अमेठी से राहुल गांधी 2019 का लोकसभा चुनाव हारे, तो गुना संसदीय सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा. फिर आया साल 2020 जब दोनों ही नेताओं के रास्ते अलग हो गए. खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस आलाकमान से नाराज होकर अपने रास्ते अलग कर लिए, और अपने साथ कुछ साथियों को भी ले गए.
जिसका खामियाजा भुगता प्रदेश में 2018 में बनी कमलनाथ सरकार ने. सरकार न सिर्फ गिरी, बल्कि अपनी जीती बाजी को भी गंवा दिया. फिर 2020 में हुए उपचुनाव में तय हो गया कि अगले चुनाव तक बीजेपी सरकार रहेगी. इधर भाजपा पार्टी ने अपने नए नवेले नेता का खूब स्वागत किया. ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के लिए जैसे तुरुप का इक्का थे. पार्टी ने उन्हें पहले राज्यसभा सदस्य नियुक्त किया और फिर केंद्र में मंत्री तक बना दिया. वे उड्डयन मंत्रालय संभाले हुए हैं.
इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया एमपी के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं हैं, लेकिन बीजेपी की तरफ से मोर्चा संभाले हुए हैं. सत्ता की धुरी कहे जाने वाली ग्वालियर रीजन पर सभी की नजर है. इधर, कमलनाथ भी कांग्रेस की तरफ से फ्रंट पर मैदान में उतरे हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस सत्ता में आ सकती है. लेकिन नजर का सिलसिला जो आकर ठहर जाता है, वो है कांग्रेस बनाम सिंधिया.
एक पहनावे तक में आते थे नजर: जब 2014 में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा, तो दोनों नेता कई बार एक साथ दिखे. कमल खिलाने के लिए मोर्चा संभाले सिंधिया कभी गांधी परिवार के सबसे करीबी शख्स माने जाते रहे हैं. उनकी दोस्ती के बारे में राजनीतिक गलियारों में दोनों को एक ही पहनावे में देखा जाता रहा है. लेकिन एमपी में सिंधिया की तकरार कमलनाथ के साथ अक्सर देखने को मिल ही जाती थी.
दिग्विजय नहीं चाहते थे, कि सिंधिया राज्यसभा में जाएं: कई बार उनको राज्यसभा भेजने की चर्चा भी रही, लेकिन दिग्विजय सिंह नहीं चाहते थे, उन्हें सांसद बनाकर राज्यसभा भी भेजा जाए. यही वो वक्त कहा जाता रहा है, जब राहुल और सिंधिया में दूरी का दायरा बढ़ता चला गया. शायद आपको ये फैक्ट्स नहीं पता होगा, कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी ने साल 1989 में सेंट स्टीफन कॉलेज में एक साथ ही एडमिशन लिया था.