ग्वालियर। सिंधिया राजघराने के मुखिया और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का आज सोमवार 1 जनवरी को जन्मदिन है. सिंधिया 1 जनवरी 1971 को मुंबई में पैदा हुए थे. जन्मदिन के मौके पर उनके समर्थक और चाहने वाले सोशल मीडिया और उनके महल पर जाकर उन्हें बधाई दे रहे हैं. मध्य प्रदेश में सबसे लोकप्रिय राजनेता के रूप में सिंधिया के जन्मदिन पर ग्वालियर होर्डिंग और बैनरों से पट जाता है. आज सिंधिया के जन्मदिन के मौके पर आज हम आपको बताएंगे कि बचपन से ही केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनौती लेने के शौकीन है और उन्हें पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजरने के तैयार रहते हैं.
चुनौतियां लेने में माहिर सिंधिया:सिंधिया राज परिवार के मुखिया और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जितने राजनीति में लोकप्रिय है उतने ही चौंकाने वाले फैसला लेने में लोकप्रिय हैं. सिंधिया के करीबी बताते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया बचपन से ही रिस्क लेने में माहिर हैं. वह हमेशा से ही बड़ा रिस्क लेकर अपने फैसले से सबको चौंका देते हैं. लेकिन सबसे खास बात उनमें यह है कि रिस्क लेकर उन चुनौतियों को पूरा करना उनकी एक आदत भी है और यह बचपन से लेकर राजनीति में कई बार देखी जा सकी है.
बिना रिस्क के नहीं मिलती सफलता: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बचपन से ही काफी खूबसूरत हैं और पढ़ने में तेज हैं. इसलिए उनके पास स्वर्गीय माधव राव सिंधिया ने उन्हें पढ़ने के लिए विदेश भेज दिया था. उनके करीबी बताते हैं की बचपन से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया स्वाभिमानी हैं वह अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करते हैं चाहे इसके लिए उन्हें कितना भी नुकसान झेलना पड़े. इसलिए जब उनके पिता ने उन्हें पढ़ाई के लिए विदेश भेजा तो कई सालों तक बिना भारत आये हुई अपनी पढ़ाई को पूरा किया और पढ़ाई में भी वह हमेशा अव्वल रहे. बचपन से ही सिंधिया को बड़े रिस्क लेने की आदत है. वह कई बार यह भी कहते हुए नजर आए हैं कि बिना रिस्क लेकर आप सफल नहीं हो सकते. अगर आपको सफल होना है तो जिंदगी में आपको रिस्क उठाना ही पड़ेगा.
पिता की मौत के बाद रखा राजनीति में कदम: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के जीवन में कई ऐसे समय आए जो पूरी तरह चुनौतियों से भरे हुए थे. लेकिन उन्होंने इन चुनौतियों का डटकर सामना किया और वह उसमें हमेशा सफल रहे. जब उनके पिता स्वर्गीय माधव सिंधिया की मृत्यु हुई तो उसके बाद सिंधिया राज परिवार की विरासत को संभालने वाला कोई नहीं था और फिर अपनी विरासत को संभालने के लिए विदेश से पढ़ाई छोड़कर सिंधिया यहां पर आए और उन्होंने राजनीति में कदम रखा.
पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया: जब सिंधिया राजनीति में आए तब ऐसा लग रहा था कि अब सिंधिया परिवार की राजनीतिक विरासत को कौन संभालेगा. क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया इसमें सफल हो पाएंगे या नहीं, लेकिन इसी बीच उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया. फिर वह इस अंचल के सबसे कद्दावर नेता की रूप में उभर कर सामने आए. कांग्रेस के कई चाणक्य राजनीति में माहिर नेताओं के बीच से निकालकर उन्होंने पार्टी में एक अलग स्थान बनाया.