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छोटी लाइन की बड़ी कहानी भाग-2: जब मध्य भारत का सपना थी रेल! तब सिंधिया राज में चली 'छुक-छुक'

एक जिद ने दुनिया बदल दी! जिस तरह कान्हा के खिलौने की जिद पर यशोदा को थाली में चांद को उतारना पड़ा था, उसी तरह एक राजकुमार की जिद पर उस वक्त मध्य भारत में छुक-छुक करती ट्रेन पटरी पर दौड़ानी पड़ी थी,. जब ट्रेन को अपनी आंखों से देखना लोगों को सपना हुआ करता था. उस वक्त भारत में ट्रेन चले 40 साल बीत चुके थे, तब इक्का दुक्का शहरों में ही ट्रेनें चलती थीं, जहां बड़े अधिकारियों का आना जाना था. उस दौर में एक राजकुमार की जिद के चलते लाखों लोगों का ट्रेन देखने और उसमें सफर करने का सपना पूरा हुआ.

gwalior narrow gauge rail track
नैरोगेज ट्रेन की यात्रा

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Published : Jul 9, 2021, 11:58 AM IST

Updated : Jul 22, 2021, 4:46 PM IST

ग्वालियर लाइट रेलवे का निर्माण ग्वालियर राज्य के महाराजा माधोराव सिंधिया ने 1893 में कराया था. ये मूल रूप से 14 मील लंबा ट्राम वे था, जबकि ग्वालियर से भिंड तक 53 मील लंबे ट्रैक का निर्माण कार्य 1895 में शुरू हुआ, जोकि 1897 तक सिर्फ 34 मील लंबा था. अकाल के दौरान राहत आपूर्ति और मिलिट्री उपकरण पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था. इस खंड समेत ग्वालियर-शिवपुरी खंड पर भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 2 दिसंबर 1899 को ट्रेन को रवाना किया. जबकि 1904 और 1911 में भारत आए ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज प्रथम ने इसी ट्रेन में यात्रा की. अपनी शुरूआत से ही नैरोगेज ट्रेन दो फीट चौड़े ट्रैक पर छुक-छुक करती आगे बढ़ती रही और देखते ही देखते लोगों की जरूरत बन गई. क्योंकि शुरुआत में यह ट्रेन केवल सरकारी जरूरतें ही पूरी करती थी. बाद में इसे सवारी गाड़ी के रूप में भी उपयोग किया जाने लगा.

नैरोगेज ट्रेन की यात्रा

ग्वालियर-जौरा रूट एक जनवरी 1904 को शुरु हुआ, जिसका 12 जनवरी 1904 को सबलगढ़ तक विस्तार किया गया. बीरपुर के लिए एक और विस्तार एक नवंबर 1908 को शुरू किया गया. श्योपुर के लिए पूरी लाइन 15 जून 1909 को शुरू की गई. 1942 में ग्वालियर लाइट रेलवे का नाम बदलकर सिंधिया स्टेट रेलवे कर दिया गया. 1950 में भारत सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया. नैरोगेज ट्रेन शुरू में भाप इंजन से चलती थी, आजादी के बाद इसमें डीजल इंजन जोड़ दिया गया. 1920 के दशक में नानकुरा बांध के नीचे एक पावर स्टेशन से रेलवे को विद्युतीकृत करने की योजना थी, लेकिन इसे बीच में ही छोड़ दिया गया.

नैरोगेज ट्रेन की यात्रा

उस वक्त नैरोगेज ट्रेन ही ग्वालियर से भिंड तक आवागमन का एकमात्र साधन थी, जिसके जरिए हजारों लोग रोजाना आना जाना करते थे. ग्वालियर से शिवपुरी तक 118 किमी लंबे ट्रैक पर ये ट्रेन रोजाना लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती थी. 1909 तक ग्वालियर लाइट रेलवे की तीन शाखाएं काम करने लगीं थी. 1932 में रेलवे की एक और शाखा उज्जैन-आगर खंड भी शुरू किया गया. शुरूआत में 30 जून 1935 तक ग्रेट इंडियन पेनेसुएला कंपनी ने इस ट्रेन का संचालन किया. कूनो कुमारी एक्सप्रेस के नाम से भी लोग इस ट्रेन को जानते थे. आजादी के बाद इसका तेजी से विस्तारीकरण हुआ.

स्टेशन से गुजरती नैरोगेज ट्रेन

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साल 1893 में शुरू हुई टॉय ट्रेन सिर्फ पैलेस के अंदर ही रह गई थी, जिसके बाद 1895 में ग्वालियर-भिंड खंड और 1899 में ग्वालियर-शिवपुरी खंड के लिए ट्रैक निर्माण शुरू हुआ. ग्वालियर-श्योपुर कलां खंड की शुरुआत 1904 में हुई थी. 1908 में बीरपुर तक और 1909 में श्योपुर तक इस लाइन को आगे बढ़ाया गया. सिलसिलेवार तरीके से छोटी लाइन पर खिलौना ट्रेन छुक-छुक करती आगे चल दी, जो 100 साल से अधिक समय तक आगे बढ़ती रही. वक्त के साथ इसे अपडेट भी किया गया. पर अब वक्त भी दगा दे रहा है और इसका साथ छोड़ रहा है. इसलिए इसके अपने भी हाथ छोड़ने लगे हैं, यानि उसी सिंधिया राज घराने के वारिस इसे मिटा कर नए रुप में लाने में जुटे हैं, जिन्होंने बड़े नाजों से इसे पाला था.

Last Updated : Jul 22, 2021, 4:46 PM IST

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