ग्वालियर लाइट रेलवे का निर्माण ग्वालियर राज्य के महाराजा माधोराव सिंधिया ने 1893 में कराया था. ये मूल रूप से 14 मील लंबा ट्राम वे था, जबकि ग्वालियर से भिंड तक 53 मील लंबे ट्रैक का निर्माण कार्य 1895 में शुरू हुआ, जोकि 1897 तक सिर्फ 34 मील लंबा था. अकाल के दौरान राहत आपूर्ति और मिलिट्री उपकरण पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था. इस खंड समेत ग्वालियर-शिवपुरी खंड पर भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 2 दिसंबर 1899 को ट्रेन को रवाना किया. जबकि 1904 और 1911 में भारत आए ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज प्रथम ने इसी ट्रेन में यात्रा की. अपनी शुरूआत से ही नैरोगेज ट्रेन दो फीट चौड़े ट्रैक पर छुक-छुक करती आगे बढ़ती रही और देखते ही देखते लोगों की जरूरत बन गई. क्योंकि शुरुआत में यह ट्रेन केवल सरकारी जरूरतें ही पूरी करती थी. बाद में इसे सवारी गाड़ी के रूप में भी उपयोग किया जाने लगा.
ग्वालियर-जौरा रूट एक जनवरी 1904 को शुरु हुआ, जिसका 12 जनवरी 1904 को सबलगढ़ तक विस्तार किया गया. बीरपुर के लिए एक और विस्तार एक नवंबर 1908 को शुरू किया गया. श्योपुर के लिए पूरी लाइन 15 जून 1909 को शुरू की गई. 1942 में ग्वालियर लाइट रेलवे का नाम बदलकर सिंधिया स्टेट रेलवे कर दिया गया. 1950 में भारत सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया. नैरोगेज ट्रेन शुरू में भाप इंजन से चलती थी, आजादी के बाद इसमें डीजल इंजन जोड़ दिया गया. 1920 के दशक में नानकुरा बांध के नीचे एक पावर स्टेशन से रेलवे को विद्युतीकृत करने की योजना थी, लेकिन इसे बीच में ही छोड़ दिया गया.