ग्वालियर। सोमवार से ग्वालियर में तानसेन संगीत समारोह का आगाज हो गया है. इस साल 98वें आयोजन में देश भर के कई विश्व प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों की अनूठी महफिल जमेगी. इस दौरान एक बार फिर से तानसेन की समाधि के ठीक बगल से लगा एक इमली का पेड़ भी सुर्खियों में है. ऐसी माना जाता है कि सुरों के सम्राट तानसेन की आवाज को इमली के पेड़ की पत्तियों ने सुरीला बनाया था. ऐसी कथा भी प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि तानसेन लगभग 5 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं सकते थे, जिसके बाद उन्हें उस्ताद मोहम्मद गौस ने गोद ले लिया और संगीत की शिक्षा दी. इस दौरान तानसेन बोलने तो लगे लेकिन उनकी आवाज सुरीली नहीं हुई. माना जाता है कि उन्हें स्वर सम्राट बनाने में इमली के पत्तों की खास भूमिका थी. यही वजह है कि आज भी तानसेन की समाधि स्थल पर जो भी कलाकार पहुंचतें वे इस इमली के पेड़ की पत्तियां जरूर खा रहा है. आइए बताते हैं इस इमली के पेड़ और संगीत सम्राट के कनेक्शन से जुड़ी रोचक कहानी.
इमली की पत्ती का चमत्कार: मुगल शासक अकबर के नवरत्न में शामिल सम्राट तानसेन का जन्म ग्वालियर के ही गांव बेहट में हुआ था. ग्वालियर में तानसेन की समाधि है और इस समाधि के बगल से ही एक इमली का पेड़ लगा हुआ है. इतिहासकार बताते हैं कि हालांकि पुराना इमली का पेड़ कई साल पहले ही टूट चुका है, लेकिन उनकी जड़ों से ही यह नया इमली का पेड़ निकला है. इस इमली के पेड़ की कहानी और मान्यता यह है कि तानसेन अपनी आवाज बहुत सुरीली और रसीली बनाने के लिए इस इमली के पेड़ के पत्ते खाते थे. इसी मान्यता के चलते आज भी समारोह में शामिल होने वाले संगीतकार और कलाकार संगीत सम्राट तानसेन को नमन करने के बाद इस इमली के पेड़ की पत्तियों को खाते हैं. यही कारण है कि जब हर साल विश्व संगीत तानसेन समारोह की शुरुआत होती है तो यहां मौजूद यह इमली का पेड़ भी चर्चाओं में आ जाता है. सैकड़ों की संख्या में यहां पहुंचने वाले संगीत प्रेमी इमली के पत्ते जरूर खाते हैं. मान्यता है जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली और मधुर हो जाती है.