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Gwalior Ravidas Jayanti: कमलनाथ की चुनावी अपील, बोले- देश के संविधान और संस्कृति को बचाने के लोग आएं आगे

ग्वालियर में संत रविदास जयंती पर भाजपा और कांग्रेस ने कार्यक्रम का आयोजन किया. इस दौरान एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का चुनावी रंग भी देखने को मिला. उन्होंने संत रविदास की तारीफ करते हुए शिवराज सरकार पर तंज कस दिया.

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कमलनाथ बोले देश का संविधान बचाओ

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Published : Feb 5, 2023, 8:31 PM IST

ग्वालियर रविदास जयंती

ग्वालियर।माघ पूर्णिमा पर रविदास जयंती का आयोजन किया जाता है. रविवार को नगर में भाजपा और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने रविदास जयंती मनाई. इस मौके पर शहर के थाटीपुर स्थित दशहरा मैदान में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के कई नेता शामिल हुए. इस दौरान कमलनाथ ने कहा कि, संत रविदास समाज में रोशनी देने वाले संत थे. कोई व्यक्ति जन्म से छोटा बड़ा नहीं होता है, बल्कि कर्म से बड़ा होता है. इसके साथ ही उन्होंने संविधान को बचाने की बात भी कही.

कांग्रेस की चुनावी बिगुल का आगाज: 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का सबसे ज्यादा फोकस ग्वालियर-चंबल अंचल पर है. एक ओर जहां, संत शिरोमणि रविदास की जयंती पर भिंड जिले से सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सरकार की विकास यात्रा को हरी झंड़ी दिखाई है, तो वहीं पीसीसी चीफ कमलनाथ ने संत रविदास जयंती पर कांग्रेस ने चुनावी बिगुल का आगाज कर दिया है. इस दौरान दोनों ही दलों ने अपने आपको, दलितों का हितैशी बताकर एक दूसरे को घेरने की कोशिश की है.

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संत रविदास जयंती पर चढ़ा चुनावी रंग: पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने उद्बोधन में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कहा कि, "इसी साल विधानसभा चुनाव है. लोग अपने विवेक के आधार पर ऐसी पार्टी को सत्ता में काबिज करें जो देश को एकजुट रखने के लिए चिंतित हो." हालांकि यह कार्यक्रम संत रविदास की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था, लेकिन इस पर चुनावी बुखार स्पष्ट रूप से देखने को मिला. उन्होंने संत रविदास की अच्छाई गिनाते गिनाते शिवराज सिंह की बुराई पर आ गए. कमलनाथ ने कहा कि, "भाजपा की आज से विकास यात्रा शुरू हुई है. शिवराज सिंह चौहान 190 महीने मुख्यमंत्री रहे है, लेकिन शिवराज जी मुंह चलाने में और प्रदेश चलाने में फर्क होता है. मैं 15 महीने मुख्यमंत्री था, बाकी चुनाव में रहा हूं. 13.5 महीने मुख्यमंत्री रहा हूं, उसका हिसाब देने को तैयार हूं. किस तरह प्रदेश का नुकसान हुआ है, ये सब जानते हैं. मुझे विश्वास है 7 महीने बाद मतदाता प्रदेश का भविष्य सुरक्षित रखेंगे." वहीं कांग्रेस की तारीफ करते हुए कहा कि, "कांग्रेस की संस्कृति जोड़ने की है. हम संकल्प लें, हम अपने संविधान को सुरक्षित रखेंगे. देश और प्रदेश की तस्वीर रख लीजिए. जाति और धर्म के बांटने का काम हो रहा है. आपसे प्रार्थना करता हूं, ऐसा देश अपनी पीढ़ियों को सौंपे, जैसा रविदास चाहते थे." उनका कहना था कि, "35 साल में पंजाब में अभी तक खालिस्तान का नाम सुनाई नहीं दिया था, लेकिन अब खालिस्तान का नाम सुनाई देने लगा है. लोग संस्कृति, धर्म और जाति के आधार पर बांटने का प्रयास करेंगे, लेकिन हमें सोचना है कि हमारी आने वाली पीढी को हम कैसा प्रदेश व देश सौंपना चाहते हैं."

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सच्चाई और ईमानदारी का दें साथ: संत रविदास के बताए मार्ग पर चलना आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि वर्तमान में संविधान पर खतरा मंडरा रहा है. लोगों की एकता को जाति धर्म के नाम पर तोड़ने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में देश को एकजुट रहकर संविधान को बचाना हम सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए. संत रविदास का स्पष्ट संदेश था कि, लोग सामाजिक समरसता के भाव के साथ जिएं क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जाति धर्म के आधार पर छोटा बड़ा नहीं होता, बल्कि अपने कर्मों के लिहाज से उसका आंकलन किया जाना चाहिए. उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि, वे सच्चाई और ईमानदारी का साथ दें. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी संत रविदास के दिखाए मार्ग पर चलने को वक्त की जरूरत बताया. इस मौके पर विभिन्न धर्मों के गुरु और आचार्य भी मौजूद थे. कार्यक्रम में पूर्व मंत्री गोविंद सिंह, लाखन सिंह, महापौर शोभा सिकरवार सहित पीसीसी पदाधिकारी और जिला अध्यक्ष भी मौजूद थे.

विधानसभा चुनाव पर पार्टियों का ध्यान: कांग्रेस और बीजेपी ने मिशन 2023 का आगाज कर दिया है. कांग्रेस ने सिंधिया के गढ़ ग्वालियर-चंबल अंचल से किया है. यह वह गढ़ है जिसके कारण साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी और सिंधिया की नाराजगी के बाद इसी अंचल के कारण 15 महीने की कमलनाथ सरकार मार्च 2020 में गिराई गई थी. यह दलित वोटर मिशन 2023 में विनिंग फैक्टर होने वाला है. कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव में दलित वोटरों की बदौलत ही ग्वालियर-चंबल अंचल में 33 साल बाद ऐतिहासिक कामयाबी हासिल हुई थी. मौजूदा स्थिति में ग्वालियर चंबल अंचल की 7 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं, वहीं अन्य 27 सीटों पर भी दलित वोटरों की बड़ी तादाद है. 2018 में दलित वोटरों की नाराजगी के कारण अंचल में भाजपा का सफाया हो गया था. बीजेपी यहां 34 में से महज 7 सीटों पर सिमट गई थी. कांग्रेस ने 1985 के बाद ऐतिहासिक कामयाबी हासिल करते हुए 34 में 26 सीटें जीती थीं.

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