ग्वालियर।मध्य प्रदेश में जब चंबल के बीहड़ों की बात होती है तो लोगों के मन में डर और उसकी कहानी आंखों के सामने आ जाती है. जिस चंबल के बीहड़ों से लोग थरथर कांपते थे, जहां खूंखार डकैत दिनदहाड़े लूट, अपहरण और हत्या की वारदात को अंजाम देते थे, अब उन्हीं खूंखार डकैतों के बसेरों का कायाकल्प किया जाएगा. लोगों की सोच को बदलने के लिए जिला प्रशासन ने नई पहल की शुरुआत की है ताकि यहां आने वाले लोग चंबल के बीहड़ों की पहचान अपने जहन में सकारात्मक रखें.
यहीं होती थी डाके की प्लानिंग:चंबल नदी के किनारे गहरी उबड़-खाबड़ खाइओं को बीहड़ के नाम से जाना जाता है. चंबल के बीहड़ खूंखार डाकुओं की शरण स्थली थे. 70 के दशक में डाकू पान सिंह तोमर, मलखान सिंह, पुतलीबाई, मुन्नी बाई, फूलन देवी, माखन सिंह और सुल्तान सिंह जैसे खूंखार डकैत इन्हीं बीहड़ों में रहते थे. यहीं से इन डाकुओं ने अपने हक की लड़ाई के लिए बगावत शुरू की और यहीं वे लूट, हत्या, अपहरण जैसी संगीन घटनाओं को अंजाम देने की प्लानिंग करते थे.