ग्वालियर। शहर में पहली बार सफलतापूर्वक किडनी ट्रांसप्लांट किया गया, पहले गुर्दे के मरीजों को ट्रांसप्लांट के लिए दूसरे शहरों का रुख करना पड़ता था, जो उनके लिए बेहद खर्चीला और समय गंवाने वाला साबित होता था, लेकिन ग्वालियर के एक निजी अस्पताल में दो महिलाओं ने अपने बेटी और बेटे को किडनी दी है.
ग्वालियर में किडनी ट्रांसप्लांट की शुरुआत, बेटी को बचाने के लिए मां ने दी किडनी - किडनी प्रत्यारोपण
अपनी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए एक महिला ने खुद को दांव पर लगा दिया, जिसकी चौतरफा तारीफ हो रही है क्योंकि महिला ने अपनी बेटी को बचाने के लिए अपनी किडनी निकलवा दी, जबकि एक और मां ने अपने बेटे के लिए अपनी किडनी निकलवा दी, साथ ही पहली बार ग्वालियर में हुए किडनी प्रत्यारोपण से भी ऐसे मरीजों को राहत मिलेगी.
दरअसल, अबाडपुरा निवासी वसीम खान को मलेरिया हुआ था, मलेरिया इतना घातक साबित हुआ कि उसकी दोनों किडनी खराब हो गई. जिसके बाद उसकी मां सायरा बेगम ने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए अपनी किडनी देने की इच्छा जताई थी. इसी तरह भिंड निवासी लक्ष्मी त्रिपाठी को एक साल से डायलिसिस करानी पड़ रही थी क्योंकि उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थी. जिसके बाद लक्ष्मी की मां पुष्पा देवी ने भी अपनी बेटी को बचाने के लिए एक किडनी देने का फैसला किया था, लेकिन प्रक्रिया जटिल होने और सरकारी अनुमति मिलने के बाद 2 दिन पहले स्थानीय अस्पताल में डाक्टरों की देखरेख में दो किडनियां ट्रांसप्लांट की गई हैं. अभी दोनों मरीज डाक्टरों की देखरेख में हैं और उन्हें हर सप्ताह डायलिसिस करवाने से निजात मिल गई है.
किडनी ट्रांसप्लांट करने वाले अस्पताल के संचालक डॉक्टर बृजेश सिंघल ने बताया कि ग्वालियर-चंबल संभाग में ये पहला मौका है, जब गुर्दा प्रत्यारोपण के दो मामलों को सफलतापूर्वक ऑपरेट किया गया है. इस प्रत्यारोपण से अंचल के लोगों को काफी राहत मिलेगी क्योंकि महानगरों के लिहाज से यहां का खर्चा आधे से भी कम आता है. खास बात ये है कि डोनर को जहां कुछ समय बाद दवाइयां बंद करने की आजादी है, वही किडनी ट्रांसप्लांट करवाने वाले को ताजिंदगी दवाइयां खानी पड़ती है, लेकिन अपनों की खुशी और उनकी जिंदगी बचाने के लिए इन महिलाओं ने समाज में एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है.