जर, जोरू और जमीन का रण है चंबल, जरा सी बात पर यहां चल जाती हैं गोलियां
मध्यप्रदेश का चंबल अंचल बीहड़, डकैत और गोलियों को लिए जाना जाता है. इस धरती के पानी में कुछ ऐसा है कि जरा सी बात लोगों को बर्दाश्त नहीं होती और गोलियां चलने लगती है. ऐसा ही कुछ दृश्य शुक्रवार को मुरैना में जमीनी विवाद में दो पक्षों में गोलियां चल गई है, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई. आइए जानते हैं चंबल में जरा सी बात पर क्यों चल जाती है गोलियां.
गोलियों का चंबल
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Published : May 5, 2023, 8:27 PM IST
ग्वालियर।मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में आज हुई खूनी घटना ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है, लेकिन यह कोई पहली बर्बर घटना नहीं है, बल्कि चंबल का रक्त रंजित इतिहास ऐसी घटनाओं से पहले से ही भरा पड़ा है. यहां पर हर बार खूनी घटनाएं होती रहती है, लेकिन सबसे खास बात यह है कि यहां पर इन घटनाओं के पीछे सिर्फ सबसे बड़ा कारण बगावत और वर्चस्व माना जाता है. यही कारण है कि चंबल का इतिहास है कि यहां सरकार से अधिक ऐसे खूंखार डाकू सिर्फ इसलिए बीहड़ में उतरे, जिनके पीछे सिर्फ जमीन विवाद और बदला लेने की सोच रही है, आज हुई यह घटना के पीछे कहानी कुछ ऐसी है.
जर,जोरू और जमीन का रण क्षेत्र:चंबल का मुरैना और भिंड जिला जहां पर रोज आए दिन जमीन विवाद और खूनी संघर्ष की कहानियां आपको देखने को मिलती है. बताया जाता है कि मुरैना और भिंड जिले में लोगों के अंदर बगावत का स्वर इस तरह बोलता है कि मामूली विवाद पर भी आमने-सामने से बंदूकें चल जाती है और बस उसके बाद खूनी खेल शुरू हो जाता है. बताया जा रहा है कि चंबल इलाका जर, जोरू और जमीन का रण क्षेत्र रहा है. यहां पर सबसे अधिक विवाद होते हैं. उसका कारण सिर्फ जमीन और सम्मान है. यहां के लोगों का खून सिर्फ इस बात से लगता है या तो उसकी जमीन को हड़पने की कोशिश की जा रही है या फिर उसकी सम्मान पर कोई ठेस पहुंची है. बस उसे ही वह अपनी प्रतिष्ठा मान लेता है और यही से बगावत का स्वर शुरू हो जाता है.
आत्मसम्मान में चल जाती है गोलियां: चंबल में अक्सर यह देखा जाता है कि यहां पर लोग मामूली बात पर बंदूक उठा लेते हैं और एक दूसरे को मारने के लिए उतारू हो जाते हैं. सबसे खास बात यह है कि यहां पर हजारों ऐसे घर हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी दुश्मनी निभाते आ रहे हैं. मतलब अगर पिछली पीढ़ी का विवाद किसी दूसरी पीढ़ी से हुआ है तो वह पीढ़ी बीतने के बाद भी नई पीढ़ी दुश्मनी निभाती है. मौका पाकर खूनी संघर्ष छिड़ जाता है. चंबल में कई ऐसी पीढ़ियां हैं, जो आज भी अपनी पुरानी पीढ़ी की दुश्मनी को खूनी संघर्ष के जरिए ताजा करती रहती है. वहीं इसके पीछे चंबल के लोगों में आत्मसम्मान भी माना जाता है. यहां के लोग अपने आत्मसम्मान के लिए किसी की जान ले सकते हैं तो अपनी भी जान दे सकते हैं. कहा जाता है कि चंबल के पानी में कुछ ऐसी तासीर है कि लोग बगावत करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. आपकी कुछ घटना ऐसी है जहां 10 साल पहले की दुश्मनी ने आज 6 लोगों की जान ले ली है.
गोलीबाजी का चंबल
कब हुई इस विवाद की शुरुआत:साल 2013 में गांव में रहने एक पक्ष गजेंद्र सिंह के लड़के वीरेंद्र और दूसरे पक्ष के धीर सिंह के बच्चों के बीच जमीन पर गोबर डालने को लेकर विवाद हुआ था. जिसमे दूसरें पक्ष धीर सिंह के दो लोगों की मौत हुई थी. उसके बाद यह मामला न्यायालय में चल रहा था. उसके बाद पहलें पक्ष के आरोपी गजेंद्र सिंह के परिवार के सदस्यों को जेल हुई और कुछ परिवार के सदस्य गांव छोड़कर अलग-अलग जगह रहने लगे. बताया जा रहा है कि अभी कुछ दिन पहले ही दोनों परिवारों के बीच राजीनामा हुआ है.
समझौता होने के बाद भी चली गोलियां: 2013 की घटना के बाद दोनों परिवारों के बीच समझौता हुआ. बताया जा रहा है कि गजेंद्र सिंह का परिवार गांव में रहने के लिए आज अपने परिवार के साथ पहुंचा था. अपने घर का जैसे ही दरवाजा खोला तो उसके बाद धीर सिंह के परिवार वालों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाना शुरू कर दिया. जिसमें एक ही परिवार के 6 लोगों की मौत हो गई. इस घटना में लेस कुमारी पत्नी वीरेंद्र सिंह, बबली पत्नी नरेंद्र सिंह तोमर, मधु कुमारी पत्नी सुनील तोमर, गजेंद्र सिंह पुत्र बदलू सिंह, सत्य प्रकाश पुत्र गजेंद्र सिंह, संजू पुत्र गजेंद्र सिंह की मौत हो गई है. घायलों में विनोद सिंह पुत्र सुरेश सिंह तोमर और वीरेंद्र पुत्र गजेंद्र सिंह शामिल है.